मज़हबी ज़ाहिलों को उनकी औक़ात दिखाओ, अपनी एकता फ़ौलादी बनाओ
🔖 सत्यवीर सिंह
पश्चिम बंगाल उर्दू अकादमी ने 27 अगस्त को, कोलकता में एक मुशायरे का आयोजन किया था, जिसकी सदारत करने तथा अपना क़लाम पेश करने के लिए, देश के प्रतिष्ठित फिल्म गीतकार, लेखक और शायर, जावेद अख्तर को बुलाया गया था. लोगों के महबूब शायर होने के साथ-साथ, जावेद अख्तर, मज़हबी कठमुल्लेपन के विरुद्ध, चाहे वह भगवा हो या हरा; बेबाक़ रूप से बोलते रहे हैं. पाकिस्तान में शायरी करते हुए, वे पाकिस्तान के फंडूओं को भी उनकी असली जगह दिखा आए हैं. उनके नाम से ही मुशायरे में, सेक्युलर और तर्क़पूर्ण, वैज्ञानिक सोच रखने वाले अवाम का हुजूम लग जाता है.
कोलकता के कट्टरवादी मुस्लिम इदारों को यह मंज़ूर नहीं हुआ. उन्होंने बखेड़ा खड़ा कर दिया, ‘जावेद अख्तर क़ाफ़िर है, ख़ुदा को नहीं मानता, हम उसे नहीं बोलने देंगे, कार्यक्रम रद्द करो’. प बंगाल की तृणमूल सरकार ने वही किया, जिसकी शिकायत, ममता बनर्जी, केंद्र की फासिस्ट मोदी सरकार से बारहा करती रही हैं, कि वह हिंदू कट्टरवादियों को अपना ज़हरीला एजेंडा चलाने की अनुमति क्यों देती है? कट्टरवादी, ग़ैरज़िम्मेदार और बिनडोक मज़हबी ज़मातों के ख़िलाफ़ सख्ती करने के बजाए, सरकार ने, मुशायरा ही रद्द कर दिया.
केंद्र में भाजपा सरकार में हिस्सेदार रह चुकीं, ममता बनर्जी भी फ़ासीवाद का छोटा रिचार्ज ही हैं!! उन्होंने यह विचार करना भी ज़रूरी नहीं समझा, कि जावेद अख्तर के कार्यक्रम, देशभर में तो सभी जगह होते ही रहे हैं, विदेशों में, यहाँ तक कि पाकिस्तान और दुबई तक में होते हैं, उनका, कहीं कोई कार्यक्रम रद्द नहीं हुआ. वे हिंदू और मुस्लिम दोनों क़िस्म के कठमुल्लाओं के निशाने पर रहे हैं.
पश्चिम बंगाल उर्दू अकादमी द्वारा मुस्लिम कट्टरपंथी संगठनों के इशारे पर आयोजित कार्यक्रम को रद्द करना, क्योंकि जावेद अख्तर साहब को बोलने के लिए आमंत्रित किया गया था, बेहद परेशान करने वाला और अस्वीकार्य है। यह यह भी दर्शाता है कि कट्टरपंथी, चाहे हिंदू हों या मुसलमान, तर्क की…
— gauhar raza (@gauharraza9) August 31, 2025
ज़मात-ए-उलेमा-ए-हिंद के, ज़िल्लुर रहमान आरिफ़ ने फ़रमाया, कि जावेद अख्तर ने इस्लाम, मुसलमानों और अल्लाह के विरोध में बहुत कुछ बोला है. वह तो इंसानी भेष में शैतान है!! ख़ुद को इस्लाम और मुसलमानों का ठेकेदार समझने वाले, लंबी लाल दाढ़ी वाले इस ‘फ़रिश्ते’ ने मुसलमानों की ग़ुरबत, बेरोज़गारी, उनके ख़िलाफ़ रोज़ हो भेदभाव, ज़ुल्म-ओ-ज़बर का विरोध करने के लिए, कब मोर्चे खोले, कब बलिदान दिया, किसी मुसलमान को याद नहीं. कोलकता में मौजूद, दूसरे फंडू इदारे, ‘वाहियाहिन फाउंडेशन’ जिसका किसी ने नाम भी नहीं सुना था, के सदर, मुफ़्ती शमैल नदवी को जब पता चला कि बिना कुछ करे-धरे, सस्ते में, करोड़ों मुसलमानों का हीरो बनने का अवसर है, तो वे भी, जालीदार टोपी पहनकर, मैदान में कूद पड़े; ‘जावेद अख्तर क़ाफ़िर है, अल्लाह को नहीं मानता, उसे नहीं बोलने देंगे. उसका कार्यक्रम रद्द करो'.
फ़ासिस्ट निज़ाम का असल मक़सद होता है; मंहगाई, बेरोज़गारी, कम वेतन की मार से कराहते मेहनतक़श अवाम को एकजुट मत होने दो. उन्हें हिंदू-मुस्लिम में बांट दो, मज़हबी ज़हालत में डुबा दो, अंधराष्ट्रवाद के नशे में टुन्न कर दो, वैज्ञानिक-तर्क़पूर्ण सोच को जड़ से उखाड़ दो, लोगों को विवेकशील इंसान नहीं भक्त बनाओ, भेड़ बनाओ, जिससे वे सवाल ना करें, अपना दर्द भूलकर सरकारी कीर्तन में शामिल हो जाएं. अलग-अलग रंग-डिजाईन के कट्टरवादी, एक दूसरे की मदद करते हैं. आज़ादी आंदोलन में भी देश ने देखा कि मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा, सभाओं में, एक दूसरे को गालियां देते रहे, लेकिन मिलजुल कर सरकार भी बनाई!!
देश के मुस्लिम समाज ने बहुत ही सहनशीलता और ज़िम्मेदारीपूर्ण व्यवहार प्रस्तुत किया है. किसी भी भड़कावे, उकसावे में आने से दृढ़ता से इंकार किया है. यही वज़ह है कि कट्टरवादी हिंदू संगठनों द्वारा समाज को हिंदू-मुस्लिम में बांटने का ख़ूनी एजेंडा अभी तक क़ामयाब नहीं हो पाया है. कोलकता की इन बेहूदी दो ज़मातों ने, तृणमूल सरकार की मिलीभगत से, करोड़ों-करोड़ मेहनतक़श, धर्मनिरपेक्ष, जनवादी, प्रगतिशील मुस्लिम समाज के सफ़र को मुश्किल बना दिया है. कट्टरवादी फासिस्ट संघी हिंदू टोले को वह औज़ार दे दिया है, जिसकी उसे तलाश थी. इसी क़िस्म के पदार्थ, पैसे देकर, दरबारी मीडिया पर होने वालीं टी वी डिबेटों में भी बिठाए जाते हैं!!
I strongly condemn silencing Javed Akhtar in Kolkata.
— Arfa Khanum Sherwani (@khanumarfa) September 3, 2025
Fundamentalists cannot be allowed to dictate who speaks in India.
This is an attack on free expression. @Javedakhtarjadu
बहुत ख़ुशी की बात है कि ज्यादा से ज्यादा क्या, लगभग समूचा मुस्लिम समाज, कोलकता के इन ज़ाहिल मुल्लाओं को लताड़ रहा है, लानत भेज रहा है. ‘ये लोग फ़ासिस्टों के मोहरे हैं’, यह आरोप लगा रहा है. समाज में, भाई-चारे की बुनियाद इतनी कमज़ोर नहीं कि कोई भी स्वयंभू मज़हबी ठेकेदार हिला दे. धर्मांध, ज़ाहिल गिरोहों को उनके एजेंडे में क़ामयाब नहीं होने देना है. मेहनतक़शों की एकता को फ़ौलादी बनाना है. काकोरी एक्शन का शताब्दी साल है, ये. महान क्रांतिवीर शहीदों, बिस्मिल-अशफ़ाक की धरती है, ये. उनकी यारी की बुनियाद को और गहरा बनाना है. रंग-बिरंगे फंडूओं को उनकी औक़ात दिखानी है.
फेसबुक पर सत्यवीर सिंह के इस आलेख पर आई कुछ प्रतिक्रियाएं:
Karmendu Shishir: अगर हो सके तो मुस्लिम समाज को ही खड़ा होना चाहिए। शायद ऐसा आज न कल हो या न भी हो।मगर जावेद अख्तर साहब को जो करना था वह महान् काम कर चुके हैं।गालिब के समय में उनके साथ भी ऐसा हो चुका है।आज या कल बेहतरी के मुस्लिम समाज को मौलवीवाद से बाहर आना ही होगा।
ईश्वर पाल शर्मा: सैंकड़ों सालों की ग़ुलामी से हिंदुस्तान को आज़ादी दिलाने वाले, दो धाराओं के लाखों अमर क्रांतिकारी-वीर सपूतों- शहीदों-जननायको-बलिदानियों- स्वतंत्रता सेनानियों हिन्दू- मुस्लिम-सिख-ईसाई सभी ने मिल-जुलकर अपना सर्वस्व देश पर न्यौछावर कर दिया, यातनाएं सही, हँसते हुए फांसी के फंदे चूमे l इतने महान देश के किसी हिस्से में, चंद् घिनौनी सोच के असामाजिक तत्व धर्म-मज़हब की आड़ लेकर देश की एकता और अखंडता को, भाईचारे को, गंगा-जमनी तहज़ीब को, सद्भावना को तोड़ नहीं सकते हैं, हाँ थोड़ा नुक़सान कर सकते हैं, अगर हमारे देश के सच्चे राष्ट्रवादी-देशभक्त, वृद्ध-युवा- महिला-मजदूर-किसान जागरूकता के साथ एकता बनाकर उठ खड़े होते हैं, तो फासिस्ट लोगों को छिपने की जगह तक नहीं मिल सकती है l देश के महान शायर फिल्म इंडस्ट्री के बहुत ही लोकप्रिय सितारें जनाब जावेद अख्तर साहब की, बहुजन हित की 'वैज्ञानिक समाजवादी विचारधारा' को भारत तो क्या दुनियाभर देश के करोड़ों लोग जानते-मानते-समझते और अम्ल भी करते हैं-अपनाते हैं l जावेद साहब की कलम ने देश भक्ति के कालजयी गीत फ़िल्मों में लिखें हैं, जो देश के हर वर्ग के लोगों की जुबान पर रहते हैं, राष्ट्रीय पर्वों पर और भारत की सेना के पराक्रम के ऊपर अक्सर उनके लिखे गीत " ऊँची आवाज " में सुने और सराहे जातें हैं l देश नफ़रत से कभी भी प्रगति-समृद्धि नहीं कर सकता है l भारत की एकता और अखंडता को धर्म-मजहब के आधार पर तोड़ा नहीं जा सकता है l केंद्र और राज्य की सरकारों को सख्ती के साथ देश के धर्म निरपेक्ष ढ़ांचे को हानि पहुँचाने वाले असामाजिक तत्वों को खुले में घूमने और देश की एकता को तोड़ने की छूट नहीं देनी चाहिए l
" महान शायर ' इक़बाल ' का तराना भारत की आत्मा है "
सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा-हमारा l
हम बुलबुले हैं इसके ये गुलशिता हमारा-हमारा ll
संजय इप्टा: ममता जी को तो यह सुनिश्चित करना चाहिए था कि कार्यक्रम हर हालत में हो और सफल हो, पर उन्होंने तो कार्यक्रम रद्द करके चरमपंथियों को खुला समर्थन दे दिया।
Rajkishore Prasad Singh: समाज में भाईचारे की बुनियाद इतनी कमजोर नहीं कि कोई भी स्वयंभू मजहबी ठीकेदार हिला दे।
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