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पत्रकारिता पर सबसे बढ़िया चुटकुला जो आज तक सुना है वो यह है...

कृष्णा रूमी

"एक पत्रकार रात को जबरदस्त बारिश में खड़ा भीग रहा था तो किसी ने उस से पूछा के इतने टेंशन में काहे हो? तो उस पत्रकार ने बताया के मुझे अखबार में डालना है की आज मूसलाधार बारिश हुई है, लेकिन मौसम विभाग ने अभी तक इसकी पुष्टि नहीं की है। "


ये चुटकुला है बहुत पुराना।नरसिम्हा राव 1991 में प्रधानमन्त्री बनने के बाद byelection लड़ रहे थे नंदयाल लोकसभा सीट से, राजीव गाँधी के मरने के बाद कांग्रेस पर कब्ज़े की जबरदस्त रेस लगी थी जिसमे सबसे आगे थे नरसिम्हा राव। नरसिम्हा राव के समर्थक चाहते थे की नरसिम्हा राव अभी तक का चुनावों में सबसे बड़े मार्जिन से जीतने का रिकॉर्ड तोड़ें ताकि पब्लिक उन्हें देश का सबसे बड़ा नेता मान ले। पिछले दो बड़े रिकॉर्ड दोनों थे रामविलास पासवान के, जो 1977 में 4 लाख तो 1989 में 5 लाख वोट से जीते थे हाजीपुर सीट से। 


अब इस बड़ी जीत के लिए राव खेमे ने प्रमुख विपक्षी TDP से भी बात कर ली और TDP ने कैंडिडेट ही खड़ा नहीं किया। लेकिन राव को सबसे बड़ा खतरा था कांग्रेस के दुसरे बड़े खेमों से, जो उसके विक्ट्री मार्जिन को कम कर सकते थे। 


नंदयाल उस समय पर एक क्राइम प्रधान इलाका था, वहाँ गाँवों में बंदूके बनाना और बम्ब बनाना आम बातें होती थीं और नरसिम्हा राव द्वारा इस कोंस्टीटूएंसी को चुनने का कारण भी यही था, तो नरसिम्हा राव की पूरी टीम इन्ही देसी बंदूकों और बम्बों को लिए घूमती थी हर इलाके में, और उस दौर में एक कानून था की अगर कोई कैंडिडेट मर जाता है तो इलेक्शन ही पोस्टपोन हो जाएगा चाहे वो कैंडिडेट इंडिपेंडेंट ही हो, इसलिए राव के समर्थकों को जहां भी पता चलता था की फलाना व्यक्ति (congressi) राव के खिलाफ खड़े होने की प्लानिंग कर रहा है उसे गाडी में डाल के सुरक्षित स्थान पर ले जाया जा रहा था !


जब एक पत्रकार ने ये देखा, और साथ खड़े पुलिस वाले से पूछा की तुम्हे ये दिखाई नहीं दे रहा? तो पुलिस वाले ने ये चुटकुला उसे सुनाया था की अभी तक तो कोई भी व्यक्ति शिकायत करने नहीं आया है किडनेपिंग की।पत्रकार ने भी अगले दिन अखबार में कुछ नहीं लिखा, क्यूंकि मौसम विभाग ने  उस दिन भी बारिश की पुष्टि  नहीं की थी। 


नरसिम्हा राव ने राम विलास पासवान का रिकॉर्ड तोड़ दिया, और उन्हें लगभग 90% वोट मिले थे उस कोंस्टीटूएंसी से। इस चुटकुले के माध्यम से राम विलास पासवान जी को सादर श्रद्धांजलि और अर्नब जैसे सरकारी पत्रकारों की पत्रकारिता को तो हमेशा ही रहेगी।