➤ गिरीश मालवीय
कोरोना में बिग फार्मा का घोटाले खुलने की शुरुआत हो गयी हैं. कोरोना की चमत्कारी दवा बताई जा रही रेमडेसिविर की असलियत आखिरकार बाहर आ ही गयी, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल में किए अपने क्लीनिकल परीक्षण में पाया कि रेमडेसिविर की डोज देने के बाद से कोविड-19 मरीज के अस्पताल में रहने की अवधि और जीने की संभावना बहुत कम और ना के बराबर है। यानी इस दवाई से कोई भी फायदा नही हुआ
लेकिन आप यकीन मानिए कोरोना काल के छह महीनों में बेहद महंगी रेमडीसीवीर बनाने वाली गिलियड साइंस ने इस दवा से तगड़ा मुनाफा कमाया है, उसका सारा स्टॉक तो बनने से पहले ही अमेरिकन सरकार ने खरीद लिया था और भारत और बांग्लादेश जैसे कई विकासशील देशो में उसने दवा का पेटेंट बेच कर बहुत पैसा बनाया है उसका काम निकल गया है अब उसे कोई फ़र्क नही पड़ता.
आप कहेंगे कि आखिरकार सत्य की जीत हुई और WHO ने उसे कोरोना के लिए रिकमंड की जा रही दवा की सूची से हटा लिया लेकिन इसमे भी WHO एक गहरी चाल खेल गया है. एक मई को अमेरिका के फूड और ड्रग प्रशासन ने रेमडेसिविर को अमेरिका इमरजेंसी में इस्तेमाल करने के लिए मंजूरी दी थी, ओर इसी आधार पर गिलियड ने पूरी दुनिया मे अपनी दवा बेच दी थी
दरअसल WHO ने कुल चार दवाओं के आकस्मिक इस्तेमाल की अनुमति दी थी ये थी हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन और लोपिनाविर-रिटोनाविर ओर रेमडीसीवीर, लेकिन जहाँ असरदार नही होने के कारण हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन और लोपिनाविर-रिटोनाविर के ट्रायल्स को जून में ही रोक दिया गया था, किंतु रेमडीसीवीर के ट्रायल्स अन्य 500 अस्पतालों और 30 देशों में लगातार चलते रहे।
जबकि यह बात शुरू से ही साफ थी कि रेमडेसिवीर के रिजल्ट इतने अच्छे नही है. रेमडेसिवीर के क्लिनिकल ट्रायल को बड़े बड़े मेडिकल जर्नल में नकार दिया गया था मेडिकल साइंस का सबसे विश्वसनीय महत्वपूर्ण जर्नल लैंसेट ने बताया कि ' रेमडेसिविर ' के covid -19 के मरीजों पर बहुत उल्लेखनीय या महत्वपूर्ण एंटी वायरल नतीजे नहीं मिले .रेमडेसिवीर लेने पर अस्पताल में भर्ती का समय सिर्फ चार दिन ही घटा है इलाज में कोई उल्लेखनीय फायदा नहीं हुआ, जिसमें मरीजों पर अच्छे प्रभाव की बात की गई थी यह Gilead द्वारा कराई गई अपनी स्टडी थी.जो नतीजों पर कम मुनाफे पर ज़्यादा केंद्रित थी.
कोरोना काल मे रेमडीसीवीर के बारे में पहले दिन से ही आपको आगाह कर रहा हूँ, जबकि मुख्य मीडिया रेमडीसीवीर को चमत्कारी दवा बताने में जुटा हुआ था. खैर जाने दीजिए. यह तो हुआ वैश्विक घोटाला अब आते हैं भारत पर, भारत में सबसे पहले इस दवा को तुरन्त ही आईसीएमआर ने ट्रायल्स की अनुमति दे दी ट्रायल्स में दवा कम्पनिया मुफ्त में दवा देती हैं लेकिन ICMR के कहने पर इस दवा को परचेज किया गया और वो भी बहुत महंगा, बड़े अस्पतालों ने अमीर मरीजों को रेमडीसीवीर लिख कर दी और 6 हजार का इंजेक्शन लोगो ने ब्लैक में 40 हजार रुपये तक के खरीदे यह सब अखबारों मे भी छपा यह सिलसिला आज तक चला आ रहा है
लेकिन अब WHO ने भी जब इसके ट्रायल्स पर रोक लगा दी है तो भी ICMR बेशर्म की तरह कह रहा है कि हम अभी इसके ट्रायल्स पर रोक नही लगाएंगे ICMR-नैशनल ऐड्स रिसर्च इंस्टिट्यूट के डायरेक्टर समीरन पांडा ने कहा है कि 'जब तक ड्रग रेगुलेटरी अथॉरिटी से निर्देश नहीं मिलते, तब तक ट्रायल चलते रहेंगे।' यानी साफ है कि जब तक गिलियड कंपनी का बचा खुचा स्टॉक ठिकाने नही लगाया जाता. भारत रेमडीसीवीर के कोरोना में इस्तेमाल की अनुमति को वापस नही लेगा. यह साफ साफ एक बहुत बड़ा घोटाला है जो विज्ञान के नाम पर अपनी महँगी दवा को बेचने से जुड़ा हुआ है लेकिन अब सारे मेडिकल प्रोफेशन से जुड़े लोग इस पर खामोश है.