Saturday, October 4, 2025

एक अमेरिकी जिसने इराकी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन की फांसी देखी


🔖 अनुवाद: अबू मुसअब अल-असरी

एक अमेरिकी, जिसने राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन की फांसी के अमल में भाग लिया, कहता है कि वह आज तक उस वाकये पर सोचता रहता है और अक्सर पूछता है कि इस्लाम मौत के बारे में क्या कहता है।

उसने कहा: "सद्दाम ऐसा व्यक्ति है जो इज़्ज़त के काबिल है।"


रात दो बजे (ग्रीनविच के मुताबिक) सद्दाम हुसैन की कोठरी का दरवाज़ा खोला गया। फांसी की निगरानी करने वाले दल का सरदार अंदर आया और अमेरिकी पहरेदारों को हटने का हुक्म दिया। फिर सद्दाम को बताया गया कि एक घंटे बाद उसे फांसी दी जाएगी।


यह आदमी बिल्कुल भी घबराया नहीं। उसने चिकन और चावल मंगवाए, जो उसने आधी रात को मंगाए थे, फिर शहद मिला हुआ गर्म पानी के कई प्याले पिए। यह वह पेय था जिसका वह बचपन से आदी था।

खाने के बाद उसे बाथरूम जाने की पेशकश की गई लेकिन उसने इनकार कर दिया।


रात ढाई बजे सद्दाम हुसैन ने वुज़ू किया, हाथ, मुंह और पांव धोए और अपने लोहे के बिस्तर के किनारे बैठकर कुरआन शरीफ की तिलावत करने लगे। यह कुरआन उन्हें उनकी पत्नी ने तोहफे में दिया था। उसी दौरान फांसी देने वाली टीम फंदे और तख्ते का जायज़ा ले रही थी।

पौने तीन बजे मुर्दाघर के दो लोग ताबूत लेकर आए और उसे फांसी के तख्ते के पास रख दिया।


दो बजकर पचास मिनट पर सद्दाम को फांसी के कमरे में लाया गया। वहां मौजूद गवाहों में जज, उलेमा, सरकारी प्रतिनिधि और एक डॉक्टर शामिल थे।

तीन बजकर एक मिनट पर फांसी की कार्रवाई शुरू हुई, जिसे कमरे के कोने में लगे वीडियो कैमरे से पूरी दुनिया ने देखा। इससे पहले एक सरकारी अफसर ने फांसी का हुक्म पढ़कर सुनाया।


सद्दाम हुसैन तख्ते पर बेख़ौफ़ खड़े रहे, जबकि जल्लाद डर से कांप रहे थे। कुछ के हाथ कांप रहे थे और कई ने अपने चेहरे नक़ाब से ढक रखे थे, जैसे माफ़िया या रेड ब्रिगेड के लोग। वे सहमे और डरे हुए थे।


अमेरिकी सैनिक कहता है:

"मेरा जी चाहा कि मैं भाग जाऊं जब मैंने सद्दाम को मुस्कुराते देखा, जबकि उनके आखिरी लफ़्ज़ थे: 'ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर रसूलुल्लाह।'

मैंने सोचा शायद कमरा बारूद से भरा हुआ है और हम किसी जाल में फंस गए हैं। क्योंकि यह नामुमकिन था कि कोई अपनी फांसी से कुछ पल पहले मुस्कुरा दे।


अगर इराकी इस मंज़र को रिकॉर्ड न करते तो मेरे अमेरिकी साथी समझते कि मैं झूठ बोल रहा हूं, क्योंकि यह यकीन से बाहर था।

लेकिन राज़ यह है कि उन्होंने कलमा पढ़ा और मुस्कुराए।

मैं यकीन दिलाता हूं कि वह सचमुच मुस्कुराए, जैसे उन्होंने कोई ऐसी चीज़ देखी हो जो अचानक उनके सामने ज़ाहिर हो गई हो। फिर उन्होंने मज़बूत लहजे में कलमा दोहराया, जैसे कोई ग़ैबी ताक़त उन्हें बुलवा रही हो।"


सद्दाम हुसैन के बारे में कुछ तथ्य

1. वह पहला हाकिम था जिसने इस्राइल के शहर तेल अवीव पर मिसाइल बरसाए।

2. उसने यहूदियों को इतना डराया कि वे बिल्लियों की तरह बंकरों में छुप गए।

3. वह जंगों में भी अरबी क़ौमियत के नारे लगाता था।

4. उसने जज से कहा: "याद है जब मैंने तुम्हें माफ़ किया था, जबकि तुम्हें फांसी की सज़ा सुनाई गई थी!" जज घबरा गया और इस्तीफ़ा दे दिया। फिर रऊफ़ को लाया गया।

5. उसने कहा: "ऐ अलूज! हमने मौत को स्कूलों में पढ़ा है, क्या अब बुढ़ापे में उससे डरेंगे?"

6. उसने शाम और लेबनान से कहा: "मुझे सिर्फ़ एक हफ्ता अपनी सरहदें दे दो, मैं फ़लस्तीन आज़ाद करा दूंगा।"


आखिरी लम्हे

फांसी से पहले अमेरिकी अफसर ने सद्दाम से पूछा:

"तुम्हारी आखिरी ख्वाहिश क्या है?"

सद्दाम ने कहा:

"मेरी वह कोट ला दो जो मैं पहना करता था।"

अफसर ने कहा: "यही चाहते हो? लेकिन क्यों?"

सद्दाम ने जवाब दिया:

"इराक में सुबह के वक्त ठंड होती है, मैं नहीं चाहता कि मेरा जिस्म कांपे और मेरी क़ौम यह समझे कि उनका क़ायिद मौत से डर गया।"

फांसी से पहले उनके लबों पर आखिरी कलाम कलमा-ए-शहादत था।

और उन्होंने अरब हाकिमों से कहा था:

"मुझे अमेरिका फांसी देगा, मगर तुम्हें तुम्हारी अपनी क़ौम फांसी देगी।"

यह कोई मामूली जुमला नहीं था बल्कि आज एक हक़ीक़त है।

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