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कंगना राणावत को अपना जातिगत गर्व वाला ट्वीट दोहराते हुए कहना चाहिए कि हाथरस केस में सियासत हो रही है!

 ➤ धीरेश सैनी

कंगना राणावत को अपना जातिगत गर्व वाला ट्वीट दोहराते हुए कहना चाहिए कि हाथरस केस में सियासत हो रही है। कंगना के प्रायोजित मामले में दुबली हो गई एंकर तो आज यही दोहराए जा रही है। खीरी, आजमगढ़, हापुड़ आदि कई जगहों पर पिछले कुछ महीनों में भयानक वारदातें हो चुकी हैं। 


लगातार कुछ खाते-पीते हुए टीवी चैनलों से चिपके रहने वाले तबके को मध्य वर्ग से ही पिक कर निशाने पर ले ली गई रिया चक्रवर्ती के मान-मर्दन से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, दलित लड़की के साथ जघन्य अपराध से तो उसे क्या? वह मानसिक रूप से अपराधों में शामिल है। स्त्री के सम्मान के लिए वह तभी उद्वेलित होता है जब चैनलों के जरिये उसे यह इशारा किया जाता है। मसलन, लव जेहाद की टीवी कहानियों पर। पीड़ित मुसलमान हो तो वह टीवी से पहले एक काउंटर स्टोरी के लिए तैयार रहता है। 


स्त्रियों के प्रति अपराध बढ़े हैं। सत्ता के इस मॉडल में स्त्रियों की असहायता, असुरक्षा और वनरेबिलिटी बहुत बढ़ गई है। मुसलमान, दलित, आदिवासी स्त्रियां-बच्चियां सबसे आसान शिकार हैं क्योंकि समाज का कोई सामूहिक गुस्सा उनके समर्थन में पैदा नहीं होता। कंगना राणावत जैसी स्त्रियां भी हैं जो स्त्रियों को ही निशाना बनाने के लिए सेवाएं देने के लिए हमेशा तैयार हैं। 


लेकिन, इसका यह अर्थ नहीं है कि सवर्ण घरों की लड़कियां ऐसे माहौल में सुरक्षित हैं। उन्माद की खुराक में डूबे उनके परिवारों को भी इसकी कोई चिंता नहीं है। दिल्ली चुनाव के दौरण गार्गी कॉलेज में छात्राओं के कपड़ों में हाथ डालने और उनके सामने हस्तमैथुन करने की वारदात पर कोई रोष पैदा नहीं हुआ। क्या इसलिए कि वह भीड़ हिंदुत्ववादी रैली की बताई जा रही थी?