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हाथरस के पीड़ित परिवार से सहानुभूति रखने वाली डॉक्टर को नक्सली बताने से फायदा किसको? वो कौन हैं जो मुद्दे को भटकाना चाहते हैं?

भंवर मेघवंशी 

उत्तरप्रदेश के हाथरस ज़िले के बोलगढ़ी गाँव में एक दलित बालिका के साथ हुई हैवानियत और उसके बाद राज्य प्रायोजित अमानवीयता के घटना क्रम से सारा देश वाक़िफ़ है . जिसने भी इस दरिदंगी के बारे में सुना है , उनकी पीड़ितों के प्रति हमदर्दी जगना स्वाभाविक ही है . देश भर से लोग पीडिता के परिवार से मिलने गये और उनको ढाढ़स बंधाया.


मध्यप्रदेश के ग्वालियर में जन्मी और वर्तमान में जबलपुर के नेताजी सुभाष चंद्र मेडिकल कोलेज में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डॉक्टर राजकुमारी बंसल को भी हाथरस की घटना ने बुरी तरह विचलित कर दिया . वे कईं दिन बैचेन रही .रातों में सो नहीं पाईँ . मीडिया रिपोर्ट्स को देखकर उनको लगा कि पीड़ित परिवार से जा कर मिलना चाहिए और उनको हिम्मत देनी चाहिये और भी यथा सम्भव जो मदद हो सके वह की जानी चाहिये . यह सोचकर डॉक्टर राजकुमारी बंसल ने मेडिकल कॉलेज से अवकाश लिया और ट्रेन से आगरा के लिए निकल पड़ी.


वे चार अक्तूबर से छह अक्तूबर की दोपहर दो बजे तक पीड़ित परिवार के साथ रही . उनको हौंसला दिया. अपनी एक महीने की सैलेरी भी पीड़िता के परिवार को दी. उनसे यह भी कहा कि आपकी एक बेटी चली गई तो यह दूसरी बेटी आ गई है , जो कि डॉक्टर भी है . इंसाफ़ की लड़ाई में आपके साथ है . डॉक्टर राजकुमारी छह को हाथरस से निकली और सात अक्टूबर को अपने घर जबलपुर आ गई.


डॉक्टर राजकुमारी एक मेडिकल डॉक्टर होने के साथ साथ सामाजिक रूप से काफ़ी सक्रिय है और बेहद मुखर भी. वे व्यक्तिगत रूप से भी और अपने एक फ़ाउण्डेशन के ज़रिये भी समाज सेवा करती रहती हैं. उन्होंने लॉकडाउन के दौरान भी राशन वितरण व लोगों को आजीविका चलाने के लिए मदद की. वे अन्याय व अत्याचार के मामलों पर भी खुलकर आवाज़ उठाती रही है .उनका कहना है कि-‘ केवल नौकरी करने के लिये मैने एजूकेशन नहीं ली, अगर मैं ग़लत के ख़िलाफ़ आवाज़ नहीं उठा सकूँ तो मेरे शिक्षित होने का क्या फ़ायदा ?’


दरअसल राजकुमारी बंसल एक अम्बेडकरवादी डॉक्टर है, वे पे बैक टू सोसायटी के अम्बेडकराइट्स विचार में विश्वास करती है. हालाँकि उनका पीड़ित परिवार से कोई रक्त सम्बंध नहीं है , यह सिर्फ़ दर्द का ही रिश्ता है . वे वाल्मीकि समाज से भी नहीं है, लेकिन पीड़ित परिवार के साथ लगातार हो रही नाइंसाफ़ी ने उनको हाथरस पहुँचने पर विवश किया और वे तमाम ख़तरे उठाते हुये न केवल उस गाँव पहुँची, बल्कि पीड़ित परिजनों के साथ रहकर उनको हौंसला दिया और यथा सम्भव मदद भी की. यह उन्होंने अपनी संवेदनशीलता व उदातत् मानवता का अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया.


पीड़ित परिवार तक पहुँचना व वहाँ उनके साथ रहना सरल काम नहीं था. वे आगरा से बस लेकर उस गाँव तक पहुँची ,जहाँ भारी संख्या में पुलिसकर्मी तैनात थे. उनसे भी पहचान पूछी गई . आइडी देखे गये, यात्रा के टिकट तक चेक किये गये और यह जानने की कोशिश की गई कि वे वहाँ क्यों आई है? डॉक्टर राजकुमारी ने यूपी पुलिस को साफ़ जवाब दिया कि -‘मैं एक मेडिकल डॉक्टर हूँ और फ़ोरेंसिक एक्सपर्ट भी. मैं पीड़ित परिवार की रिश्तेदार नहीं हूँ. मैं अन्याय के ख़िलाफ़ न्याय के पक्ष में यहाँ इन लोगों को हिम्मत देने के लिए आई हूँ .


डॉक्टर राजकुमारी के पीड़ित पक्ष से मिलकर वापस लौटने के बाद एक कहानी रची गई और उस झूठ को मीडिया व जाँच एजेंसियाँ प्रचारित करके मामले से लोगों का ध्यान भटकाने की असफल कोशिश कर रही है . वैसे तो यूपी सरकार ने दंगे भड़काने की साज़िश , योगी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम करने की कोशिश और भीम आर्मी व पोपुलर फ़्रंट ऑफ़ इंडिया के मध्य सम्बंध होने तथा सौ करोड़ का विदेशी फ़ंड आने जैसे झूठ बुने गये है, पर ताज़ा झूठ यह रचा गया है कि हाथरस कांड का नक्सली कनेक्शन मिल गया है, इस घटना के तार नक्सलवादियों से जुड़े हुये हैं.


मनुस्ट्रीम मीडिया और यूपी एसआईटी का आरोप है कि डॉक्टर राजकुमारी बंसल के तार  अर्बन नक्सल से जुड़े हुये हैं . वे हाथरस में पीड़ित परिवार के साथ भाभी बनकर दो बार रही है . वे पहले सोलह सितम्बर से उनतीस सितम्बर तक और फिर तीन से सात अक्तूबर तक पीड़ित परिवार की रिश्तेदार बन कर पीड़ित परिवार में रही और उनको भड़काया, उकसाया और साज़िश रची.


इसके बाद दलित बहुजन विरोधी मीडिया ‘ नक्सली भाभी ‘ की स्टोरी चलाने लगा कि जबलपुर की एक डॉक्टर घूँघट निकाल कर पीडिता की भाभी बनकर मीडिया व आगंतुकों से बात कर रही थी !


डॉक्टर राजकुमारी बंसल इन आरोपों को बचकाना व हास्यास्पद बताती है, उनका कहना है कि वो क्यों घूँघट निकाल कर बैठेगी और मीडिया से बात करेगी ? उनका कहना है कि वे दो बार नहीं बल्कि सिर्फ़ एक ही बार वहाँ गई और इसके सबूत उनके पास है, ज़रूरत पड़ी तो  वे इस दुष्प्रचार  के ख़िलाफ़ न्यायपालिका में जायेगी .


डॉक्टर राजकुमारी बेख़ौफ़ यह कहने से भी नहीं हिचकती है कि -"अगर ग़लत के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना अर्बन नक्सल कहलाता है तो मुझे कोई दिक़्क़त नहीं है कि मैं अर्बन नक्सल हूँ और आगे भी ग़लत के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाती रहूँगी"


वे स्पष्ट रूप से कहती है कि मेरे सरकारी नौकरी के नियुक्ति पत्र में कहीं नहीं लिखा है कि 'मैं ग़लत के ख़िलाफ़ नहीं बोल सकती और ज़रूरतमंदों की मदद नहीं कर सकती? मेरे ख़िलाफ़ साज़िश की जा रही है. मैं हर जाँच का सामना करने को तैयार हूँ, पर लोगों के साथ किए जा रहे जुल्मों के ख़िलाफ़ बोलूँगी '


डॉक्टर राजकुमारी बंसल मूलतः ग्वालियर की है, वे यहीं जन्मी और पढ़ी लिखी . बाद में मेडिकल की पढ़ाई करने जबलपुर चली गई, जहाँ पर नेताजी सुभाष चंद्र मेडिकल कोलेज से उन्होंने एमबीबीएस किया . उन्होंने डीओएमएस ( नेत्र सम्बंधी ) तथा एमडी औषधि विज्ञान में दो बार पीजी किया है और वर्ष 2018 से वे इसी मेडिकल कोलेज में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के रूप में कार्यरत है. वे एक अम्बेडकरवादी मानवतावादी डॉक्टर है, जो हर मुसीबतज़दा और ज़रूरतमंद की मदद करती है और अन्याय अत्याचार के ख़िलाफ़ जमकर बोलती हैं.


हाथरस में जिस तरह से गैंग रेप पीडिता के साथ हैवानियत की गई और बाद में पूरे सिस्टम ने हर स्तर पर पीड़िता व उनके परिजनों के साथ अमानवीयता की गई , उससे विचलित हो कर वे हाथरस गईं और पीड़ित परिवार को ढाढ़स बंधाया मदद की. इसमें क्या अपराध कर दिया डॉक्टर राजकुमारी ने ? 

लेकिन फ़ासीवादी सत्ता इस समय पीड़ितों को ही अपराधी साबित कर देने के डिजायन पर काम कर रही है. जो भी वंचितों व उत्पीडितों के पक्ष ने बोलेगा, लिखेगा या साथ देगा, उन सबको अर्बन नक्सली बता कर फँसाया जा रहा है. सरकार अपने ही देश के पीड़ित नागरिकों के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ चुकी है. इससे ज़्यादा अलोकतंत्रिक और अमानवीय बात क्या हो सकती है ?


आख़िर डॉक्टर राजकुमारी बंसल ने हाथरस जा कर पीड़ित परिवार से मिलकर उनके साथ रहकर उनकी मदद करके उनको दिलासा देकर क्या अपराध कर दिया है जो इस देश का मनुवादी मीडिया और सरकार उनके पीछे पड़े हैं और बिना किसी आधार के बदनाम कर रहे है ? 


हम कब तक नक्सलवाद के नाम पर डराये जायेंगे? कब तक हमारी इंसाफ़ की लड़ाइयाँ साज़िशों की भेंट चढ़ती रहेगी? हम कब तक चुप रहेंगे? आज डॉक्टर राजकुमारी बंसल का नम्बर है, कल आपका, हमारा, हम सबका नंबर आने वाला है. सत्ता हर प्रतिरोध की आवाज़ को ख़ामोश कर देगी, फिर सन्नाटे के सिवा कुछ भी नहीं बचेगा ! इसलिए यह वक़्त है पूरी ताक़त से डॉक्टर राजकुमारी बंसल के साथ खड़े होने का, बेख़ौफ़ बोलिये, मुँह खोलिए. ( लेखक शून्यकाल डॉटकॉम  के सम्पादक हैं)