Monday, October 6, 2025

आंखों देखी: छह अक्टूबर 2025 के दिन भारत की सुप्रीम कोर्ट में जो हुआ, वह बेहद शर्मनाक है


नई दिल्ली
। सुबह के 11:45 बजे होंगे। मैं सुप्रीम कोर्ट में चीफ साहब की कोर्ट में बैठा हूं। दो जजों की बेंच बैठी हुई है। मेंशनिंग चल रही है। मेरी नजर बेंच की तरफ है। वकील लोग बारी बारी से आकर अपने-अपने केस मेंशन कर रहे हैं। अचानक मैं देखता हूं कि कोई चीज मेरी दाहिनी तरफ से बेंच की तरफ फेंकी जाती है और दोनों जस्टिस के बीच में से गुजर जाती है।


अगले ही पल मेरी नजर उस ओर जाती है जिधर से वह चीज फेंकी गई थी। एक आदमी जो वकील की वेशभूषा में है, दोनों हाथ उठाए अपनी सीट पर खड़ा है। पीछे से उसका चेहरा नहीं दिख रहा है। मुझे समझ में आ जाता है कि इस आदमी ने बेंच की तरफ जूता फेंक कर मारा है। मुझे समझते देर नहीं लगी कि इसने चीफ साहब को निशाना बनाया है। कारण समझते देर नहीं लगी। 


इसके तुरंत बात वह वकील खुद स्पष्ट करता है कि उसने चीफ साहब को निशाना बनाया है। कोर्ट में सब लोग स्तब्ध खड़े हैं। सबको बेंच की प्रतिक्रिया का इंतजार है। सिक्योरिटी का एक ऑफिसर आकर तुरंत उसको पकड़ लेता है। गेट के बाहर खड़ी सिक्योरिटी आती है और उसे बाहर लेकर जाने लगती है। अब मैं उसका चेहरा देख पाता हूं। वह एक सत्तर साल के आस पास का बुजुर्ग वकील है, जो जाते जाते धीमे स्वर में बोल रहा है..."सनातन का अपमान नहीं सहेंगे।" 


सुरक्षाकर्मी उसे बिल्कुल मेरे दाहिनी तरफ वाले गलियारे से ले जा रहे हैं। मुझे उसकी शक्ल देखकर घृणा हो रही है। एक पल को मन में आता है कि आगे बढ़कर इसको एक ही शॉट में पूरे ब्रह्मांड के दर्शन करा दूं लेकिन अगले ही पल सुप्रीम कोर्ट की गरिमा का ख्याल आते ही मैं जेंटलमैन वाली फिलिंग में आ जाता हूं। चीफ साहब ने अपने पद की गरिमा के अनुरूप तुरंत मामले को संभाल लिया है और दो मिनट के अंदर अदालत की कार्रवाई फिर से शुरू हो जाती है...


मेरे अंदर बेचैनी है। बाहर आता हूं और अपने दोस्त को कॉल करता हूं। कॉल पिक नहीं होती। दूसरे राजनीतिक मित्र को कॉल करता हूं। इसके बाद तेज कदमों से लाइब्रेरी की तरफ जाता हूं। दोस्त को बताता हूं। वह अपने सीनियर को बताता है। वे दोनों स्तब्ध हैं।


यह सब सोचते हुए चीफ जस्टिस बी. आर. गवई साहब की जाति मेरे दिमाग में कौंध जाती है। फिर अचानक मुझे कल उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में हुई वीभत्स घटना याद आती है जिसमें एक दलित व्यक्ति को चोरी के शक में भीड़ द्वारा पीट पीटकर मार दिया गया था और उसके मुंह पर पेशाब किया गया था। दोनों घटनाएं आपसे जुड़ी हुई प्रतीत होती हैं। फिर उस हमलावर वकील का नारा याद आता है.."सनातन का अपमान नहीं सहेंगे।"


मैं सोच रहा हूं...आखिर क्या है ये सनातन? किसका है ये सनातन? दलितों पिछड़ों और आदिवासियों का क्या स्थान है इस सनातन में? यह किसके हित में काम करता है? इसके स्वयंभू ठेकेदार कौन हैं? जूता फेंकने वाले वकील की जाति क्या है? फिलहाल ऐसे तमाम सवालों से घिरा हुआ हूं...

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