फ़िरोज़ गांधी से जुड़े सच और झूठ, आप कितना जानते हैं?
🔖 रमेश मिश्रा चंचल
आज फ़िरोज़ गांधी जिन्हें हम अक्सर केवल नेहरू के दामाद, इंदिरा गांधी के पति, राजीव गांधी के पिता और राहुल-वरुण गांधी के दादा के रूप में जानते हैं। वरुण गांधी का पूरा नाम भी दरअसल फ़िरोज़ वरुण गांधी है। लेकिन दशकों से इनके बारे में झूठ फैलाया गया कि वे “फ़िरोज़ खान” थे, मुस्लिम थे और गांधी सरनेम उन्हें महात्मा गांधी ने दिया था।
यह झूठ एक राजनीतिक रणनीति के तहत फैलाया गया ताकि लोगों को लगे कि गांधी परिवार “मुस्लिम” है और इसलिए राष्ट्रहित का नहीं हो सकता। यह झूठ सिर्फ़ इसलिए फैलाया गया ताकि एक पूरे परिवार और एक पूरे पारसी समुदाय को बदनाम किया जा सके। जबकि खुद बीजेपी की स्मृति ईरानी ने भी अपनी सहेली के पारसी पति को छीनकर उससे शादी की है।
पारसी कौन हैं?
फ़िरोज़ गांधी न तो खान थे, न मुसलमान। वे पारसी थे।
पारसी कौन हैं? यह जानना ज़रूरी है।
पारसी वे ज़रथुष्ट्र धर्मावलंबी लोग थे जो 10वीं शताब्दी में मुस्लिम आक्रमणों से बचकर फारस (ईरान) से भागकर भारत आए और गुजरात में शरण ली। उन्होंने 200 साल तक अरब आक्रमणकारियों से संघर्ष किया। अंततः हारकर कुछ ने इस्लाम स्वीकार किया और आज के “ईरानी मुसलमान” बने, लेकिन जिन्होंने धर्म बदला नहीं, वे भारत आकर “पारसी” कहलाए।
उनके नाम भी विशिष्ट होते हैं—जमशेद, दारा, शाहरुख़, बोमन—जो अरब मुस्लिमों से अलग पहचान रखते हैं। पारसी सरनेम भी अक्सर पेशे से जुड़े होते हैं: बाटलीवाला, स्क्रूवाला, गादीवाला, डॉक्टर, मर्चेंट, और गांधी (गन्ध/परफ्यूम बेचने वाला)।
ध्यान रहे—पारसी धर्म में पैदा होना पड़ता है, धर्मांतरण से कोई पारसी नहीं बन सकता। विवाह करने पर भी पति/पत्नी पारसी नहीं बनते।
आज पूरी दुनिया में मुश्किल से 1 लाख पारसी बचे हैं, जिनमें से 70,000 भारत में और लगभग 60,000 सिर्फ़ मुंबई और गुजरात में रहते हैं। इसीलिए उत्तर भारत में पारसी समुदाय के बारे में लोग बहुत कम जानते हैं।
लेकिन योगदान देखिए—
व्यापार में: जमशेदजी टाटा, गोदरेज, नेविल वाडिया, साइरस मिस्त्री।
स्वतंत्रता आंदोलन में: दादाभाई नौरोजी, फिरोज़शाह मेहता, मैडम भिकाजी कामा।
सेना में: जनरल सैम मानेकशॉ।
विज्ञान में: होमी भाभा।
कला-सिनेमा में: सोहराब मोदी, बोमन इरानी, फ्रेडी मरकरी (फारुख बलसारा)।
अब सोचिए—फ़िरोज़ गांधी जैसे व्यक्ति को “मुसलमान खान” साबित करने का मतलब क्या है?
फ़िरोज़ गांधी का असली जीवन
फ़िरोज़ गांधी का जन्म 12 सितम्बर 1912 को मुंबई में पारसी दंपति जहांगीर गांधी और रतिमाई गांधी के यहाँ हुआ। किशोरावस्था में वे अपनी मौसी शिरीन कोमीसारियात (इलाहाबाद की डॉक्टर) के पास रहने लगे और वहीं से आज़ादी के आंदोलन में कूद पड़े।
1930 में जब कमला नेहरू धूप में गिर पड़ीं तो फ़िरोज़ उनकी मदद को आगे आए। फिर वे जवाहरलाल नेहरू और कांग्रेस के और निकट हुए। गांधीजी से भी मिले। गांधीजी ने उनके बारे में कहा था—“अगर ऐसे 10 नौजवान मुझे मिल जाएँ तो मैं एक हफ्ते में देश को आज़ाद कर दूँ।”
1942 में उनका विवाह इंदिरा नेहरू से हुआ, वह भी हिंदू वैदिक रीति से। नेहरू जी इस विवाह के खिलाफ़ थे, लेकिन इंदिरा और फ़िरोज़ साथ रहे और आगे चलकर उनके दो बेटे हुए—राजीव और संजय।
पहला व्हिसलब्लोअर: संसद का शेर
आज लोग भूल चुके हैं, लेकिन फ़िरोज़ गांधी ही वह पहले सांसद थे जिन्होंने आज़ादी के बाद संसद में घोटालों के खिलाफ़ आवाज़ उठाई।
मुंदरा कांड (LIC से 1.24 करोड़ रुपये लेकर डूबती कंपनियों के शेयर खरीदना)।
👉 फ़िरोज़ गांधी ने यह घोटाला उजागर किया, जिसके बाद तत्कालीन वित्त मंत्री टी.टी. कृष्णामचारी को इस्तीफ़ा देना पड़ा और मुंदरा जेल गया।
डालमिया-जैन (Times of India मालिक), बिरला और गोएंका के खिलाफ़ भी घोटाले उजागर किए।
👉 आरोप लगा कि वे पारसी होने के नाते “टाटा” के पक्ष में कर रहे हैं। तब उन्होंने टाटा की टेल्को डील का घोटाला भी संसद में खोला। परिणाम—टेल्को की विदाई और रेलवे लोकोमोटिव वर्कशॉप सरकारी क्षेत्र में आया।
फ़िरोज़ गांधी की बहादुरी देखिए—वे सत्ता पक्ष (कांग्रेस) के सांसद थे, पर भ्रष्टाचार पर अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया।
1952 में वे रायबरेली से सांसद बने।
1960 में मात्र 48 वर्ष की आयु में हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया। तब वे इंदिरा गांधी से अलग रह रहे थे।
उनकी अस्थियाँ इलाहाबाद (प्रयागराज) के पारसी कब्रिस्तान में रखी गईं। अंतिम संस्कार पर उमड़ी भीड़ देखकर नेहरू जी दंग रह गए और बोले—“मुझे पता ही नहीं था कि फ़िरोज़ इतना लोकप्रिय है।
आज वही फ़िरोज़ गांधी, जिनके नाम पर वरुण गांधी का नाम रखा गया, उन्हें झूठा “खान” साबित किया जाता है।
फ़िरोज़ गांधी ने संसद में कहा था:
“मेरे मन में एक विद्रोह ने मुझे इस बहस को बढ़ाने के लिए मजबूर किया। जब इस तरह के भयंकर झूठ मेरे सामने आए तो चुप रहना एक अपराध होगा।”
आज भी यही सच है।
फ़िरोज़ गांधी सिर्फ़ “नेहरू के दामाद” नहीं थे। वे भारत के पहले बड़े व्हिसलब्लोअर थे, जिन्होंने सत्ता के सामने झुकने से इंकार किया।
उनका अपमान करके लोग सिर्फ़ गांधी परिवार को नहीं, बल्कि पूरे मेहनती और सम्मानित पारसी समुदाय को गाली देते हैं, जिसने भारत को उद्योग, सेना, विज्ञान, कला हर क्षेत्र में गौरव दिया है।
और आख़िर में सवाल—
अगर “कट्टर हिंदूवादी” लोगों को सच में दिक़्क़त है तो वरुण गांधी से पूछें—अपने नाम से फ़िरोज़ क्यों नहीं हटाते? माँ का सरनेम सिंह क्यों नहीं लगा लेते?
झूठ को बार-बार दोहराने से वह सच नहीं हो जाता।
सत्य बोलते रहना ही फ़िरोज़ गांधी की सच्ची श्रद्धांजलि है।