भ्रष्टाचार के राजनीतिक हथियार 'चुनावी बांड' के खिलाफ महाजंग के महानायक प्रो. जगदीप छोकर को नमन
🔖 राकेश कायस्थ
चुनावी बांड को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाइयों का दौर लगातार चल रहा था। सरकार हर मुमकिन कोशिश कर रही थी कि उसकी गर्दन बच जाये। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का मैनेजमेंट इस बात की पुरजोर कोशिश कर रहा था कि बांड के ज़रिये राजनीतिक दलों को चंदा देने वाली कंपनियों के नाम सार्वजनिक ना करने पड़े।
आईटी सेल और सरकार समर्थक मीडिया टूल किट और विदेशी हाथ जैसे चिर-परिचित जुमले उछाल रहे थे, ताकि राजनीतिक व्यवस्था में पारदर्शिता की मांग कर रहे लोगों की साख पर बट्टा लगाया जा सके। इन सबके बीच सीबीआई और ईडी भी अपना काम कर रहे थे। यानी इधर-उधर छापे रोज पड़ रहे थे।
चुनावी बांड मामले की मुख्य याचिकाकर्ता संस्था एडीएआर (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) के प्रमुख प्रोफेसर जगदीप ए. छोकर से उसी दौरान किसी यू ट्यूबर ने पूछा “क्या आपको इस बात का डर नहीं लगता कि ईडी आपके घर भी आ सकती है।“ प्रो. छोकर ने हंसकर जवाब दिया "आएंगे तो मैं उन्हें प्यार से चाय पिलाकर वापस भेजूंगा और बाकी मेरे घर से क्या ले जाएंगे।"
जब व्यक्ति के पीछे ईमानदारी और नैतिक शक्ति का बल होता है, उसकी प्रतिक्रिया वैसी ही होती है, जैसी प्रो. छोकर की थी। एडीआर ने सात साल की लंबी लड़ाई लड़ी और आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड को गैर-कानूनी वसूली का उपकरण मानते हुए रद्द कर दिया। इतना ही नहीं टालमटोल करने वाले सरकारी बैंक एसबीआई को चंदा देने वाली कंपनियों के नाम भी सार्वजनिक करने पड़े।
— ADR India & MyNeta (@adrspeaks) September 12, 2025
प्रोफेसर जगदीप ए. छोकर हमारे समाज के उन महानायकों में थे, जिनके बारे में हम या तो बिल्कुल नहीं जानते या फिर बहुत कम जानते हैं। आईएमएम अहमदाबाद में प्राध्यापक रहे प्रोफेसर छोकर बिना किसी शोर-शराबे के चुनाव सुधार और लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए काम करते रहे। उनकी संस्था एसआईआर मामले में भी मुख्य चायिका कर्ता थी। प्रोफेसर छोकर का जीवन यह बताता है कि बेईमानी के खिलाफ लड़ाई तभी सफल हो सकती है, जब लड़ने वाला निजी जीवन में ईमानदार हो।
यह एक संयोग है कि प्रो.छोकर का निधन सीपीएम नेता सीताराम येचुरी की पहली पुण्य तिथि के दिन हुआ है। येचुरी की तरह प्रो.छोकर भी अपना शरीर मेडिकल रिसर्च के लिए दान दे गये हैं। ऐसे लोग हमें यकीन दिलाते हैं कि हमारे आसपास की दुनिया उतनी बुरी भी नहीं है, जितनी हम कई बार मान लेते हैं। प्रो.छोकर और कामरेड येचुरी को सादर नमन!
