मैथिली ठाकुर और राजनीति में आने की जल्दबाजी
| लोक गायिका मैथिली ठाकुर के साथ बीजेपी महासचिव विनोद तावड़े और केंद्रीय गृह मंत्री नित्यानंद राय |
🔖 विवेकानंद सिंह कुशवाहा
मैं अगर मैथिली ठाकुर का भाई होता तो उसे कहता कि राजनीति में आने की जल्दबाजी बिल्कुल मत करो। तुममें ईश्वर प्रदत्त खूबियां हैं, तुम्हारे गाये गीत/भजन को सुनकर सिर्फ बिहारियों का ही नहीं, बल्कि देश-दुनिया की किसी भी भाषा के आदमी का मन आनंदित हो उठता है। जितना सम्मान और शोहरत तुमने अपनी गायकी से अर्जित की है, उसे छोटा मत करो। यह सही है कि राजनीति में एक पावर है, लेकिन सोचो तुम कितनी पावरफुल हो कि तुम मंच पर होती हो और राजनेता तुम्हारे सामने दर्शक/श्रोता की तरह नीचे बैठे होते हैं।
पवन सिंह जैसों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा समझ भी आती है। तुम्हें इतनी जल्दबाजी पता नहीं क्यों है? तुम्हारे पिताजी का बयान सुना तो लगा जैसे विधायक बनने की इच्छा उनकी है, लेकिन सहारा वो तुम्हारा लेना चाह रहे हैं। मैं तो चाहूंगा कि सोने के अंडे देने वाली मुर्गी को मत मारो। एक बार पार्टी-पॉलिटिक्स की राह पकड़ते ही तुम वह मैथिली नहीं रह जाओगी, जो आज तुम हो। वैसे तुम 25 वर्ष की हो चुकी होगी, तभी ऐसा सोच रही हो। हर वयस्क को अपना हित अच्छे से समझ आता है। मैं अपनी समझ के हिसाब से बोल ही सकता हूं, क्योंकि शारदा जी के बाद दीपाली सहाय और तुम्हारे गाये लोक गीत मुझे अच्छे लगते हैं।
मुझे एक प्रेरक प्रसंग याद आ रहा है, जो एक साधु ने किसी सत्संग में बताया था। प्रसंग कुछ इस प्रकार है कि... एक रात को कोई चोर एक राजा के राजमहल में चोरी करने घुसा। उसे सुनाई दिया कि राजा रानी से कह रहा है- “कल सवेरे गंगाजी के किनारे जो साधु ठहरे हुए हैं, उनमें से एक के साथ राजकन्या का विवाह रचायेंगे।” सुनते ही चोर ने सोचा- “मैं भी क्यों न गंगा किनारे साधु बनकर बैठा रहूं। यदि भाग्य जाग गया, तो राजकन्या के साथ विवाह हो जायेगा और उसे कभी यह सब काम नहीं करना पड़ेगा” उसने वैसा ही किया।
तो, आप मैथिली ठाकुर बिहार में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं।
प्रिय बिहारवासियों, किसी भी सक्रिय अभिनेता, गायक आदि को वोट मत देना, चाहे वह किसी भी पार्टी का हो, वे कभी आपकी मदद के लिए आगे नहीं आएंगे।
कंगना रनौत आपके सामने एक बेहतरीन उदाहरण हैं 🙌 #बिहारचुनाव2025 pic.twitter.com/jAgTT59dGy
दूसरे दिन सवेरे राजा के सैनिक व मंत्री गंगा किनारे उस स्थान पर आकर एक-एक कर सब साधुओं को राजकन्या के साथ विवाह करने के लिए विनती करने लगे, पर कोई साधु राजी न हुआ। अंत में राजकर्मचारियों ने उस साधुवेशधारी चोर को आमंत्रण दिया, पर चोर उस समय अपना मनोभाव प्रकट न कर थोड़ा चुपचाप सधे रहा। मंत्रियों ने आकर राजा से कहा- “एक युवक साधु हैं, वे शायद राजी हो सकते हैं, परंतु बाकी कोई साधु तैयार नहीं है।”
तब राजा-रानी स्वयं उस साधुवेशधारी चोर के पास गये तथा नाना प्रकार से उसकी आरजू-मिन्नत करने लगे, परंतु राजा-रानी को सामने मिन्नत करता देख ही उस चोर का मन बदल गया। वह सोचने लगा- “मैंने केवल साधु का वेश चढ़ाया है, इतने से ही राजा-रानी खुद आकर मेरी इतनी खुशामद कर रहे हैं, तब तो न जाने वास्तव में साधु बनने पर मुझे और क्या-क्या न मिलेगा।”
इस विचार के परिणामस्वरूप उसने विवाह के प्रस्ताव को नकार दिया और वह वास्तव में यथार्थ साधु बनने के लिए प्रयत्न करने लगा। फिर उसने कभी विवाह नहीं किया और वह एक अच्छा साधु बन गया। इससे सीख मिलती है कि जिस काम की वजह से आपको इतनी शोहरत मिल रही है। उस पर टिके रहिए, आगे और बड़े मुकाम आयेंगे।
बाकी त जे है से हइये है।