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'कुत्ता' जब बार-बार सिर्फ अपने 'मालिक' का अटेंशन पाने के लिए भौंकता है तो गुस्से में आकर 'हाथी' उसे कुचल भी सकता है!

 ➤रवींद्र रंजन

अर्नब की गिरफ्तारी को जो लोग बदले की कार्रवाई बता रहे हैं, मुझे भी उनसे कुछ कहना है। अपनी बात शुरू करने से पहले मैं एक छोटी सी घटना बताना चाहता हूं। एक सोसायटी में रिटायर्ड कर्नल साहब ऊपर वाले किसी फ्लोर में रहते थे, ग्राउंड फ्लोर पर जो परिवार रहता थे उन्होंने एक कुत्ता पाल रखा था। 


कर्नल साहब रोज मॉर्निंग वॉक पर जाते थे। जैसे ही वो सीढ़ियां उतरकर ग्राउंड फ्लोर पर पहुंचते, पड़ोसी का कुत्ता उन पर जोर-जोर से भौंकने लगता, वह कर्नल साहब पर झपटने की पूरी कोशिश करता था, लेकिन बाहर चारदीवारी थी इसलिए नाकाम रहता था। कर्नल साहब उसे रोकने की कोशिश करते, लेकिन वह नहीं मानता। यह सिलसिला बदस्तूर चला आ रहा था। 


एक दिन कुत्ते को सुबह गेट खुला मिल गया और वो कर्नल साहब पर झपट पड़ा, कर्नल साहब अपनी रक्षा के लिए एक डंडा हाथ में रखते थे, लिहाजा उन्होंने भी कुत्ते को दो-चार डंडे लगा दिए। इतनी देर में पड़ोसी बाहर आ गया और चीखने चिल्लाने लगा। उसका आरोप था कि चूंकि कुत्ता रोज कर्नल साहब पर भौंकता था, इसलिए कर्नल साहब ने बदले की भावना से उसे डंडे मारे हैं। कुत्ते के मालिक के कई दोस्त, रिश्तेदार भी उसके पक्ष में आ गए, कुछ कुत्ता प्रेमी भी इकट्ठे हो गए।


सबका कहना था कि कर्नल साहब ने कुत्ते पर बदले की कार्रवाई की है। कुत्ता प्रेमियों की दलील थी कि भौंकना, झपटना और काटना तो कुत्ते का स्वभाव है, लेकिन कर्नल साहब को उसे डंडे से नहीं मारना चाहिए था। मतलब यह कि कर्नल साहब को कुत्ते का भौंकना, झपटना और काटना बर्दाश्त करते रहना चाहिए था। मुमकिन है कि कुत्ते का मालिक उसे इसके लिए उकसाता हो? इसके बावजूद कर्नल साहब को सब सहते रहना चाहिए था, क्योंकि भौंकना, झपटना और काटना कुत्ते का जन्मजात अधिकार है। 


अब अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तारी की बात। बहुत से लोग आरोप लगा रहे हैं कि अर्नब की गिरफ्तारी बदले की कार्रवाई है। आरोप सही हो सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले देखना होगा कि जिस केस में गिरफ्तारी हुई है वो केस क्या है? उस केस में कितना दम है? सबसे अहम बात कि इस केस का पत्रकारिता या अभिव्यक्ति की आज़ादी से कोई लेना-देना ही नहीं है। यह आर्थिक अपराध का मामला है, जिसकी वजह से दो लोगों की जान गई है। अर्नब पर पीड़ित को आत्महत्या के लिए उकसाने या मजबूर करने का आरोप है। एक सुसाइड नोट भी है। सुसाइड नोट में अर्नब गोस्वामी समेत तीन लोगों के नाम हैं। पुलिस ने तीनों को गिरफ्तार किया है। अगर सिर्फ अर्नब की गिरफ्तारी होती और बाकी दो को पुलिस छोड़ देती तब कहा जा सकता था कि यह गिरफ्तारी बदले की कार्रवाई है। 


बदले की कार्रवाई का आरोप लगाने वालों से एक छोटा सा सवाल। क्या कुछ फंड का जुगाड़ करके अपना मीडिया हाउस खोल लेने से किसी को यह सर्टिफिकेट मिल जाता है कि वो किसी पर भी अनाप-शनाप आरोप लगा सकता है? और जरूरत पड़ने पर पत्रकार होने की दुहाई देकर बच सकता है? एक तथाकथित पत्रकार अपने स्टूडियो में बैठकर हर तरह के धतकर्म करता रहे, किसी को भी क़ातिल, गुनहगार और साजिशकर्ता बताता रहे और उस पर कोई कार्रवाई न हो?


अर्नब गोस्वामी अगर अपनी शक्तियों का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं, तो क्या दूसरे पक्ष को अगर लगता है कि उसे बदनाम किया जा रहा है, झूठे आरोप लगाए जा रहे हैं, तो वह अपनी शक्तियों का इस्तेमाल नहीं करेगा? जिस देश में सरकार के खिलाफ आवाज उठाने पर आरटीआई एक्टिविस्ट को गोली मार दी जाती है, मॉर्निंग वॉक पर निकलने से जान का खतरा हो जाता है, जज साहब के बेटे को खुद कहना पड़ता है कि वो अपने पिता की संदेहास्पद मौत की जांच नहीं करवाना चाहता, उस देश में आप एक पुलिस कमिश्नर, मुख्यमंत्री और मुख्यमंत्री के बेटे पर अनाप-शनाप आरोप लगाते हैं और ये भी चाहते हैं कि वो पक्ष बेहूदा आरोप लगाने वाले के खिलाफ अपनी शक्तियों का इस्तेमाल न करे? ऐसा तो तभी हो सकता है जब सामने वाला घोर गांधीवादी हो। लेकिन वर्तमान में तो महाराष्ट्र में शिवसेना की सरकार है और उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री हैं। ऐसे में अगर अर्नब गोस्वामी शिवसैनिकों से गांधीवादी बनने की उम्मीद कर रहे हैं तो यह उनकी मूर्खता ही है।


शुरुआत कुत्ते की कहानी से की थी और खत्म करने से पहले भी यही कहना चाहता हूं कि एक मरियल कुत्ते को भी अगर कोई बेवजह परेशान करे तो वह अपने बचाव में काटने को दौड़ता है और अर्नब गोस्वामी तो बिना किसी सबूत के ना जाने किस-किस पर तमाम बेहूदा आरोप लगाते रहते हैं। बल्कि वह तो अपने चैनल पर बैठकर किसी को आरोपी बताने की बजाए सीधे-सीधे मुजरिम ही करार देते हैं। जब चाहते हैं किसी का भी नाम अंडरवर्ल्ड, आतंकवाद और पाकिस्तान से जोड़ देते हैं। झूठ की बुनियाद पर पूरे बॉलीवुड को बदनाम करने की मुहिम चलाते हैं। स्टूडियों में बैठकर चिल्लाते हैं ''कहां छिपे बैठे हो सलमान?'' पालघर में साधुओं की हत्या पर पुलिस की कार्रवाई और जांच से पहले ही झूठ बोलकर उसे सांप्रदायिक बना देते हैं। सोनिया गांधी का नाम लेकर ऐसे चीखते हैं, जैसे कोई गली का गुंडा चिल्ला रहा हो। 


खैर, आखिर में एक कहावत "कुत्ता भौंकता है, हाथी अपनी चाल चलता है।" लेकिन कुत्ता जब बेवजह भौंक-भौंककर अति कर देता है तो गुस्से में हाथी एक पैर कुत्ते के ऊपर भी रख सकता है। यह बात कुत्ते को भी समझनी चाहिए और कुत्ता प्रेमियों को भी।