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राष्ट्रीय चैनलों के मुकाबले गुजरात के स्थानीय चैनल ज्यादा जिम्मेदार हैं, ये हिन्दू मुस्लिम के नाम पर जहर की खेती नहीं करते

आर्जव पारेख

गुजराती न्यूज़ चैनल कैसे काम कर रहे हैं, आज उस पर बात...हाथरस मामले में हुई स्थानीय पत्रकारिता से हम सबने देखा की कैसे स्थानीय मीडिया ने अपने काम से राष्ट्रीय मीडिया को मजबूर कर दिया। राष्ट्रीय मीडिया की पत्रकारिता के नष्ट होने के समय में गुजराती स्थानीय मीडिया कैसे काम कर रहा है? 


गुजराती न्यूज़ चैनलों के टीआरपी अनुसार टॉप 3 चैनल है  जी 24 कलाक, एबीपी अस्मिता और संदेश न्यूज़। इसके अलावा मुख्य चैनल है, न्यूज़ 18 गुजराती, जीएसटीवी ( गुजरात समाचार टीवी) और वीटीवी गुजराती न्यूज़ जो कभी कभार टॉप 3 में आते जाते रहते है। व्यूवरशिप लगभग एक जैसी है। गांवो में वीटीवी न्यूज ज्यादा देखा जाता है। इसमें हम जी 24 कलाक  की बात छोड़ देते है क्योंकि वो अपने राष्ट्रीय चैनल का प्रतिबिंब ही है।


बाकी के सभी चैनल लगभग एक समान पत्रकारिता करते है। एबीपी अस्मिता और न्यूज़ 18 नेटवर्क में कभी कभार विपक्ष को निशाने ले लिया जाता है लेकिन इन चैनलों पर भी स्थानीय मुद्दों का प्रभाव छाया रहता है। ये बात भी नोट करने लायक है की सभी चैनलों पर सुशांत का मुद्दा कभी नहीं छाया हुआ था। 


सभी चैनल ने पिछले छह महीनों में कोरोना को अत्यधिक महत्व दिया है। जब गुजरात बीजेपी के नए अध्यक्ष सी आर पाटिल ने कोरॉना काल में रैलियां की थी तो पूरा दिन इन चैनलों ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया था और वो खुद जब संक्रमित हो गए थे, तब प्रमुखता से उनको सुपर स्प्रेडर के तौर पर चैनलों में पेश किया गया था। नेता कोई भी हो बीजेपी का हो या कांग्रेस का लेकिन उनके सोशल डेस्टेंसिंग के भंग की खबर ब्रेक करने में कोई चैनल एक मिनट की भी देरी नहीं लगाता और सीधे नाम लेकर ही सवाल होते है।


भारी बारिश के कारण भ्रष्टाचार से भरपूर रोड टूट गए थे, और पूरे गुजरात में लगभग सभी रोड की हालत खराब हो चुकी थी। में अपने शहर में भी एक रोड ऐसा नहीं देख सकता था कि को पूर्ण रूप से अच्छा हो ऐसी खराब हालत थी। तब ' संदेश न्यूज़ ' ने लगभग तीन दिनों तक ' भांगी नाख्या ' ( गड्ढों ने मार डाला) मुहिम चलाई थी और गुजरात के डेप्युटी सीएम नितिन पटेल को तत्काल प्रेस कांफ्रेंस कर के इनका जवाब देना पड़ा था, तत्काल रूप से रोड रिपेयरिंग का आदेश देना पड़ा था। इसके अलावा प्राइवेट स्कूलों में फीस की माफी की मुहिम कितने दिनों से चल रही थी। अब 25% माफी मिली है लेकिन सरकार को इतना करने के लिए मजबूर करने के लिए कोर्ट के अलावा मीडिया का भी बड़ा रोल है।


में खास तौर पर यहां दो चैनलों की बात करना चाहूंगा। पहला है GSTV (गुजरात समाचार टीवी) और दूसरा है विटिवी गुजराती न्यूज़। इन दोनों चैनलों के प्राइम टाइम डिबेट देख लीजिए ( में लगभग 1 साल के अनुभव के बाद कह रहा हूं) आपको लोगों के मुद्दे, स्थानीय मुद्दों के सिवाय कुछ देखने को नहीं मिलेगा। यहां सुशांत कंगना जैसे मुद्दों की कोई जगह ही नहीं है, लगभग एकाध डिबेट हुआ होगा जब कोई बात जरूरी लगी हो।


गुजरात समाचार टीवी पर जयनारायण व्यास जी की डिबेट अति प्रसिद्ध है। वीटीवी गुजराती पर 'महामंथन' नाम से इसुदान गढ़वी का  डेढ़ घंटे का प्राइम टाइम डिबेट आता है जो पूरे गुजरात में सबसे लोकप्रिय है। जिसमें हर पैनलिस्ट को लगभग पंद्रह मिनट का टाइम मिलता है और उस बीच में एंकर एक बार भी बोलते नहीं। में दावे के साथ कह सकता हूं की लोगों के प्रमुख मुद्दों के अलावा यहां कोई विषय नहीं होता। 


ये बात सही है की गुजराती चैनलों की इन डिबेट्स को छोड़ दे तो पूरा दिन ज्यादा कंटेंट नहीं होता और बातें रिपीट होती रहती है लेकिन राष्ट्रीय चैनलों की तरह ये हिन्दू मुस्लिम के नाम पर जहर की खेती नहीं करते। कुछ कुछ बार विपक्ष के नेताओं को टारगेट कर लेते है, लेकिन सत्ता में काबिज लोगो को भी छोड़ते नहीं है। कॉरोना काल में भी हॉस्पिटलों की खराब हालतो को बहुत अच्छी तरह उजागर किया है। स्थानिक चैनलों में क्वालिटी रिपोर्टर बहुत कम होते है इसलिए मुद्दों की गंभीर रिपोर्टिंग तो नहीं होती लेकिन वह मुद्दा पूरा दिन रिपीट होता रहता है और सरकार टारगेट होती रहती है। कभी कभार ऐसा लगता है कि राष्ट्रीय मीडिया के नाश होने के समय में स्थानिक चैनलों ने पत्रकारिता को बचाकर रखा है। (रवीश कुमार की वाल से)