Saturday, October 4, 2025

क्या RSS ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया था?


🔖 शंकर सुंडा

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक बड़ी आलोचना ये की जाती है कि उसने ब्रिटिश राज के ख़िलाफ़ भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से हिस्सा नहीं लिया था.


साल 1925 में जब आरएसएस अस्तित्व में आया उस वक़्त स्वतंत्रता आंदोलन पहले से ही ज़ोर पकड़ रहा था.


गोलवलकर के बयानों  ये साफ़ होता है कि आरएसएस ने साल 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा नहीं लिया था.


धीरेंद्र झा एक जाने-माने लेखक हैं, जिन्होंने आरएसएस पर गहन शोध किया है


धीरेंद्र झा के मुताबिक़, आरएसएस का आधार हिंदुत्व की विचारधारा थी जो "हिन्दुओं को ये बताने की कोशिश कर रही थी कि उनके सबसे बड़े दुश्मन मुसलमान हैं, न कि ब्रितानी सरकार".


धीरेंद्र झा कहते हैं, "साल 1930 में जब गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया तो आरएसएस में भी उथल-पुथल शुरू हुई. आरएसएस का एक धड़ा इस आंदोलन में हिस्सा लेना चाहता था."


"हेडगेवार के सामने समस्या थी. संगठन को वो ब्रिटिश-विरोधी लाइन पर नहीं ले जा सकते थे. और न ही वो अपने सदस्यों के सामने कमज़ोर दिखना चाहते थे."


"तो उन्होंने साफ़ कर दिया कि संगठन उस आंदोलन में हिस्सा नहीं लेगा. अगर किसी को हिस्सा लेना है तो वो व्यक्तिगत तौर पर ले. मिसाल के तौर पर उन्होंने ख़ुद पद से इस्तीफ़ा दिया और एलबी परांजपे को सरसंघचालक बना दिया और ख़ुद जंगल सत्याग्रह में हिस्सा लिया और गिरफ़्तार हुए."


धीरेंद्र झा कहते हैं कि साल 1935 में जब आरएसएस अपनी स्थापना की दसवीं सालगिरह मना रहा था तो हेडगेवार ने अपने एक भाषण में ब्रितानी शासन को 'एक्ट ऑफ़ प्रॉविडेंस' (ईश्वरीय काम) कहा.


झा कहते हैं, "आरएसएस का मूल तर्क ब्रिटिश विरोधी बिल्कुल नहीं था बल्कि एक स्तर पर वो ब्रिटिश-समर्थक हो रहा था, क्योंकि वो ब्रिटिश-विरोधी आंदोलन को विभाजित कर रहा था. वो ऐसा आंदोलन था जिसमें हिंदू मुसलमान दोनों शामिल थे, और आरएसएस केवल हिंदू हितों की बात कर रहा था."


वरिष्ठ पत्रकार और लेखक नीलांजन मुखोपाध्याय ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बड़े नामों पर 'द आरएसएस: आइकन्स ऑफ़ द इंडियन राइट' नाम की किताब लिखी है.


वो कहते हैं, "आरएसएस का लक्ष्य औपनिवेशिक शासन से आज़ादी हासिल करना नहीं था. आरएसएस की स्थापना इस्लाम और ईसाई धर्मों के मुक़ाबले हिंदू समाज को मज़बूत करने के विचार से की गई थी. उनका उद्देश्य अंग्रेज़ों को बाहर निकालना नहीं था. उनका लक्ष्य हिंदू समाज को एकजुट करना था, उन्हें एक आवाज़ में बोलने के लिए तैयार करना था."


संघ की आलोचना इस बात के लिए भी की जाती है कि साल 1939 में जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देने के बाद डॉ हेडगेवार से मुलाक़ात करने की कोशिश की और इसके लिए संघ के एक बड़े नेता गोपाल मुकुंद हुद्दार को बोस ने दूत के तौर पर भेजा लेकिन हेडगेवार ने अपनी ख़राब तबीयत की बात कहते हुए मुलाक़ात से मना किया.


साल 1979 में इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ़ इंडिया में गोपाल मुकुंद हुद्दार ने लेख में इस बात का ज़िक्र किया है.


आरएसएस के मुखपत्र द आर्गेनाइजर में साल 2022 में छपे डमरू धर पटनायक के एक लेख में ये कहा गया कि 20 जून 1940 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस डॉ हेडगेवार से मिलने पहुंचे.


पटनायक लिखते हैं, "उस समय डॉक्टरजी आरएसएस के एक प्रमुख पदाधिकारी बाबा साहेब घटाटे के आवास पर स्वास्थ्य लाभ ले रहे थे. जब वे (नेताजी) पहुंचे तब तक हेडगेवारजी नींद में थे, उन्होंने अपनी आंखें बंद कर ली थीं."

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