➤ प्रभात डबराल
मैंने भी बीस साल टीवी पत्रकारिता की है. चैनलों का प्रमुख भी रहा हूं. जहां तक हो सका कभी किसी ऐंकर को किसी धर्मविशेष के साथ जुड़ी पोशाक या चिन्हों के साथ एंकरिंग नहीं करने दी.
एंकर अपने धार्मिक रुझानों का पर्दे पर बढ़ चढ़कर प्रदर्शन करे ये मुझे अच्छा नहीं लगता था. कई लोग सहमत नहीं होंगे लेकिन मेरा मानना रहा है कि अपनी धार्मिक आस्थाओं को सार्वजनिक जीवन के क्रिया कलापों से जितना दूर रख सकें रखना चाहिए. एकाध दिन से कई रिपोर्टरों/ एंकरों की ऐसी तस्वीरें सोशल मीडिया में दिखाई दे रही हैं जो उन्होंने अयोध्या से भेजी हैं और जिनमें वो त्रिपुण्ड वग़ैरह लगाकर अपने रामभक्त होने का सबूत दे रहे हैं. आप रामभक्त हैं. ज़रूर हों. ये आपकी आस्था का प्रश्न है. लेकिन रिपोर्ट करते हुए कोई रिपोर्टर/एंकर रामभक्त वाली यूनीफार्म में दिखा तो मुझे तो अच्छा नहीं लगेगा, आपकी आप जानो.
एक दिन एक रिपोर्टर, जिनके माथे पर चंदन लगा था, राखियों से भरी कलाई में माइक पकड़ कर रिपोर्ट कर रहे थे जो मुझे सही नहीं लगा. मैंने अपनी नाराज़गी उन सज्जन को बता भी दी. शायद उन्हें बुरा लगा हो.
मंदिर मस्जिद गिरजों गुरुद्वारों के भीतर से रिपोर्ट करते हुए वहाँ के नियमों का पालन करना पड़ता है, उसे इस बात से ना जोड़ें. वो सम्बन्धित पूज़ास्थल के अनुशासन का प्रश्न है. कहने का मतलब ये है कि आमतौर पर रिपोर्टर/ एंकर भावनाओं में बहता नहीं दिखना चाहिए. युद्ध जैसे माहौल की बात और है. पर ये हमारे जमाने की बात है.