पत्रकारिता के बारे में मेरी राय: पत्रकार का राजनीतिक दलों या नेताओं को सलाह देना उचित नहीं है
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मीडिया के वर्तमान हालात पर तीक्ष्ण व्यंग्य करता काजल कुमार का एक जबरदस्त कार्टून। |
🔖 शीतल पी सिंह
पत्रकार की सीमा इस बात पर निर्भर करती है कि उसका प्राथमिक कर्तव्य क्या है: तथ्यों को निष्पक्ष रूप से प्रस्तुत करना और जनता को सूचित करना। पत्रकार का मुख्य कार्य सवाल पूछना, तथ्यों की जांच करना, और समाज को सटीक, विश्वसनीय जानकारी प्रदान करना है। उसे सत्ता, राजनीतिक दलों, या नेताओं की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सवाल उठाने चाहिए, न कि उनकी नीतियों को निर्देशित करने या सलाह देने की भूमिका निभानी चाहिए।
पत्रकार को अपनी व्यक्तिगत राय या पक्षपात से बचना चाहिए। उसका काम तथ्यों को बिना तोड़-मरोड़ के प्रस्तुत करना है, न कि किसी राजनीतिक दल या नेता का समर्थन या विरोध करना।
पत्रकार का दायित्व है कि वह जनता को सही और प्रासंगिक जानकारी दे। सलाह देना या नीति निर्माण में हस्तक्षेप करना उसकी भूमिका से बाहर है, क्योंकि इससे उसकी विश्वसनीयता और निष्पक्षता पर सवाल उठ सकते हैं।
पत्रकारिता के नैतिक सिद्धांतों (जैसे, सत्य, निष्पक्षता, और स्वतंत्रता) का पालन करना अनिवार्य है। सलाह देना या किसी दल के लिए रणनीति बनाना पत्रकारिता के दायरे से बाहर जाता है और इसे प्रचार या लॉबिंग के रूप में देखा जा सकता है। पत्रकार का राजनीतिक दलों या नेताओं को सलाह देना उचित नहीं है।
ऐसा करने से:
- उसकी निष्पक्षता संदिग्ध हो सकती है।
- जनता के बीच उसकी विश्वसनीयता कम हो सकती है।
- पत्रकारिता का उद्देश्य, जो है सत्ता को जवाबदेह बनाना, कमजोर पड़ सकता है।
हालांकि, कुछ संदर्भों में, जैसे विश्लेषणात्मक लेखन या संपादकीय में, पत्रकार सामाजिक या नीतिगत मुद्दों पर सुझाव दे सकते हैं, लेकिन यह भी सामान्य जनहित के लिए होना चाहिए, न कि किसी विशिष्ट दल या नेता के लिए।
पत्रकार को सवाल पूछने, तथ्यों को उजागर करने, और जनता को सूचित करने तक सीमित रहना चाहिए। सलाह देना या राजनीतिक रणनीति में शामिल होना पत्रकारिता की मूल भावना के खिलाफ है और इससे उसकी स्वतंत्रता व विश्वसनीयता को नुकसान पहुँच सकता है।
SIR पर मेरी रिपोर्टिंग के बाद बेगूसराय पुलिस मुझे फंसाने के लिए साजिशों का सहारा ले रही है- अजीत अंजुमhttps://t.co/BSEkoLI7C1
— VOiCE OF MEDIA (@voiceofmedia1) September 4, 2025
वरिष्ठ पत्रकार शीतल पी सिंह की यह पोस्ट उनके फेसबुक अकाउंट से ली गई है। इस पोस्ट पर आई कुछ प्रमुख प्रतिक्रियाएं भी पठनीय हैं-
मनोज रैदास कबीर: पत्रकार कभी निष्पक्ष नही हो सकता। उसे चिर विपक्ष में ही रहना चाहिए । विपक्ष यानि जनता का पक्ष ही उसका पक्ष होना चाहिए । पत्रकार को यदि सरकारों का पक्ष सही लगने लगे तो उसे मान लेना चाहिए कि अब वो पत्रकार नही रहा।
Pankaj Srivastava: भारतीय पत्रकारिता का इतिहास स्वतंत्रता आंदोलन से नत्थी है इसलिए न्याय के पक्ष में सक्रिय हस्तक्षेप उसकी खूबी रही है। भेड़ और भेड़ियों के बीच निष्पक्षता निरर्थक है। गणेश शंकर विद्यार्थी पत्रकार शिरोमणि कहलाते हैं पर निष्पक्ष नहीं थे। नमक आंदोलन के समय संयुक्त प्रांत के कांग्रेस अध्यक्ष थे और अपने 'प्रताप' प्रेस में भगत सिंह को शरण लेते थे। समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व पर आँच आये या कहीं अन्याय हो तो पक्षधरता ज़रूरी है। हाँ, तथ्यों की पवित्रता होनी चाहिए, हर हाल में।
Ramanand Rai: आपके लेख में आपने पत्रकारिता की असली परिभाषा और दायरे को बहुत स्पष्ट किया है। लेकिन आज जो "गोदी मीडिया" हो रहा है, वह ठीक इसके उलट है। जहाँ पत्रकार का काम सवाल पूछना और सत्ता को जवाबदेह ठहराना होना चाहिए, वहाँ गोदी मीडिया का बड़ा हिस्सा सत्ता से सवाल पूछने के बजाय जनता से सवाल पूछ रहा है। वे विपक्ष को कठघरे में खड़ा करते हैं, लेकिन सत्ता से असुविधाजनक प्रश्न गायब रहते हैं।
जहाँ पत्रकार को तथ्यों को बिना तोड़-मरोड़ के पेश करना चाहिए, वहाँ गोदी मीडिया तथ्यों से ज़्यादा "नैरेटिव" गढ़ने और उसे आगे बढ़ाने में व्यस्त है। कई बार खबरें आधी-अधूरी या एकतरफ़ा तरीके से दिखाई जाती हैं ताकि सत्ता के पक्ष में माहौल बने।
जहाँ पत्रकार को तटस्थ और स्वतंत्र होना चाहिए, वहाँ आज कई चैनल और अख़बार सत्ता के प्रवक्ता की तरह काम कर रहे हैं। वे न सिर्फ नेताओं की नीतियों को जस्टीफाई करते हैं, बल्कि कई बार उन्हें सलाह भी देते नज़र आते हैं—जो कि आपके लिखे अनुसार पत्रकारिता का असली काम नहीं बल्कि प्रचार और लॉबिंग की श्रेणी में आता है।
आपने सही कहा—पत्रकार का काम "सलाहकार" या "रणनीतिकार" होना नहीं है। लेकिन गोदी मीडिया ने पत्रकारिता को उसी में बदल दिया है। वे जनता को सूचित करने की बजाय, सत्ता को बचाने और विपक्ष को घेरने का काम कर रहे हैं।
यानी, आज की पत्रकारिता का बड़ा हिस्सा अपने नैतिक सिद्धांतों (सत्य, निष्पक्षता और स्वतंत्रता) से भटक गया है। और यही कारण है कि लोगों का भरोसा मीडिया से उठ रहा है।
असली पत्रकारिता वही है जो आपने लिखा
सत्ता से असहज सवाल पूछना
जनता को तथ्य देना
निष्पक्ष और स्वतंत्र रहना
बाक़ी सब प्रचार है, और प्रचार कभी भी पत्रकारिता नहीं हो सकता।
Saleem Akhter Siddiqui: संक्षेप में इतना ही कहना है कि पत्रकार जनता के प्रति जवाबदेह होता है, न कि सत्ता, किसी विशेष राजनीतिक दल या नेता के प्रति।
Nishat Imran: आज की मिडिया सरकार की गोद में बैठी हुईं है तभी तो रवीश जी इसको गोदी मीडिया कहते हैं
Rajnikant Vasistha: पत्रकार की इस आदर्श आचार संहिता का आज के दौर में वही पालन कर सकता है जो ब्रह्मर्षि नारद जैसा हो। न घर, न पत्नी, न बाल बच्चे और जो धोखा खाने पर उस नारायण को भी शाप दे सके जिनका नाम जपता रहा हो। पत्रकार के नितांत व्यक्तिगत सवाल, मसलन वेतन, परिवार पोषण आज उसे राजनीति के दलदल में धकेल दे रहे हैं मित्र।
Sushil Ojha: आपने सही मुद्दा उठाया है। निष्पक्षता केवल पत्रकारिता में ही अपेक्षित नहीं है हर संस्थान केलिए आवश्यक है।
निष्पक्षता समाज की सबसे छोटी इकाई परिवार से आरंभ होती है। इसके अभाव में परिवार बिखरता है।
निष्पक्षता के अभाव में न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका की छबि न केवल धूल धूसरित होती है समाज देश और समाज के ताना-बाना का क्षरण होने लगता है।
पत्रकारिता तो समाज और सामाजिक संरचना का थर्मामीटर है, एम आर आई है। इसे बोलता आईना भी कहा जाता है। आईना कभी झूठ नहीं बोलता है।
सुबह-सुबह चाय के साथ समाचारपत्र जब सामने आए तो उसके हेडलाइंस में न केवल सच्चाई की झलक हो उसका सम्पादकीय एम आर आई का रिपोर्ट हो-- सटीक, विश्वसनीय, तथ्यात्मक।
पत्र और पत्रकार समाज और सत्ता के बीच संवाद का माध्यम है। और यह जोखिम से भरा हुआ है। क्योंकि निष्पक्ष पत्रकार सत्ता की आंख की किरकिरी होता है। आंख में वह गड़ता है।
संवैधानिक संस्थाएँ यदि जनतांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध न हो तो पत्र और पत्रकार को बहुत मूल्य चुकाना होता है। पत्रकारिता वस्तुतः किसी बोर्डर पर युद्धरत सिपाही के जीवन से कम जोखिम भरा नहीं होता है। अनेक पत्रकार आज इस दंश को झेल रहे हैं।
प्रिंट मिडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक मिडिया दोनो औद्योगिक घरानो से पोषित होते हैं। औद्योगिक घरानों का अपना हित-अहित होता है और वह सरकार तथा सत्ता से प्रभावित होता है। ऐसे में पत्रकारिता की निष्पक्षता प्रभावित होती है।
जब बड़े बड़े मिडिया संस्थान प्रदूषित होने लगे तो यूट्यूबर अस्तित्व में आ गये। इन पर भी सरकार की बक्र दृष्टि है।
जोखिम का दूसरा नाम ही जीवन है। जीवन संघर्ष है।
आपका न्यूज और व्यूज दोनो ही विश्वसनीय है। अच्छा लगता है।
Naved Shikoh: पत्रकारों की तीन किस्में हैं-
1- दस फीसद आप जैसे निष्पक्ष,निर्भीक, निरपेक्ष, संतुलित और हर पार्टी और हर दौर की सरकार में सरकार की कमियों को बयां कर पत्रकारिता का फर्ज निभाने वाले।
2- 60 फीसद वे पत्रकार जिन पर उनकी पेशेवर मजबूरियां या स्वार्थ इतना हावी है कि वो हर सरकार में सरकार के संगे बन कर पत्रकारिता का बलात्कार करते हैं। बिन पेंदी के लोटे। जैसा कि पिछले एक दशक में तमाम कांग्रेसी और समाजवादी पत्रकार अब भाजपाई पत्रकारों का चरित्र निभा रहे हैं।
3- तीस प्रतिशत ऐसे पत्रकार हैं जो अपनी चाहत और विचारों के गुलाम बन कर पत्रकारिता करते हैं।
जो कांग्रेस को देशहित में मानता है वो हमेशा भाजपा के खिलाफ रहा, चाहे भाजपा सत्ता में हो या विपक्ष में।
जो भाजपा को राष्ट्रवादी मानता है वो हमेशा कांग्रेस के खिलाफ दिखा। कांग्रेस जब सत्ता में थी तब भी और कांग्रेस विपक्ष में है अब भी।
Mahaveer Parshad: पत्रकारिता टेलिविजन चैनलों पर तो बिल्कुल ही खत्म हो चुकी है, Navika Kumar, Sushant Sinha, Rubika Liyaquat, Amish devgan, रिपब्लिक भारत, इंडिया टीवी को क्या कोई 30 मिनट लगातार देख सकता है?
Sudhir Sharma: सवाल- पत्रकार है कौन? कहा है?
सच्चे निर्भीक पत्रकार सोशल मीडिया पर है,और लगातार गलत को गलत और सही को सही कह रहे हैं! टीवी पर पत्रकार नही सरकार के अघोषित प्रवक्ता बनकर सरकार का एजेंडा चला रहे हैं!
ऋषि नायक: 'पत्रकारिता' लोकतंत्र की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है। जो जनता को सरकार, प्रशासन से जोड़ती है। जो कि निस्पक्षता, निडरता , पारदर्शिता के साथ होना चाहिए, लेकिन आज के दौर में सबसे निम्न स्तर में है। आजकल तो खुले तौर में पत्रकार पार्टियों के साथ दिखते हैं । सत्ता पक्ष के साथ ज़्यादा और कुछ विपक्ष के साथ भी । पत्रकारिता के साथ दिखने वाले विरले ही बचे हैं। वो तो कम से कम लोग सोशल मीडिया में लिखते ,आवाज़ उठाते रहते हैं। नहीं तो ये दौर गोदी मीडिया का ही है। जिसने लोकतंत्र को सबसे ज़्यादा नुकसान पहुंचाया है।
Ashutosh Pandey: सर आज की पत्रकारिता मे सूचना बची ही नहीं प्रोपोगेंडा चलता है.. सुबह एक पर्ची थमा दी जाती है दिन भर उसी के आसपास घूमती है पत्रकारिता.. बहुत अफ़सोस होता है सर आज की पत्रकारिता को देख कर.. मैं ये मानता हूँ कोई भी निष्पक्ष नहीं हो सकता लेकिन इतना onesided भी नहीं होना चाहिए कम से कम अपना धर्म तो ईमानदारी से निभाए... आपलोगों को सुनकर बहुत अच्छा लगता है सर।
गुलशन कुमार अरोड़ा: शीतल जी ,आपकी पोस्ट से सहमत हूँ ,लेकिन एक सवाल आजकल मन में आता है की अन्ना मूवमेंट के वक्त कितने पत्रकारों ने नियोजित षड्यंत्र को भांप लिया था या फिर उसकी पड़ताल की थी ? आज मैं जिन पत्रकारों को यू ट्यूब चैनलों पर देखता हूँ सत्ता से सवाल करते हुए , उस वक्त वही मुझे अन्ना के साथ खड़े दिखे थे ,क्या वो भी सच भांपने में चूक गए ?
Yashodanandan Sharma: लोकतंत्र मे पत्रकार को विपक्ष के पक्ष मे होना चाहिए, सत्ता तो खुद ही बहुत समर्थ है,उसका समर्थन करना लोकतंत्र को कमजोर करता है,हां सत्ता के अच्छे कामों की वो आलोचना न करे-बस सत्ता को इतना समर्थन पर्याप्त है।
Mukesh Aseem: निष्पक्षता मोहक है, पर अवास्तविक। न्याय और अन्याय का विश्लेषण और इनमें पक्ष का चुनाव, इनसे बचने का आज कोई विकल्प नहीं है, अन्यथा अनचाहे अन्याय के मददगार हो जाने का जोखिम है।
Rakesh Kumar Chauhan: पत्रकार हो या कोई और, हर एक की कोई न कोई राय होती ही है, किसी न किसी सिद्धान्त को वह अकाट्य सत्य मानता ही है, किसी को एक सिद्धान्त सत्य लगता है किसी को ठीक उसके उलट। कोई किसी सिद्धान्त को क्यों अन्तिम सत्य मानने लगता है इस विषय पर कई सिद्धान्त उपलब्ध हैं और वे भी एक-दूसरे के उलट !!! पर क्या कोई अन्तिम सत्य हो भी सकता है क्या… यह तो तब तक अनुत्तरित ही रहेगा जब तक कि सबै सयाने एक मत जैसा कुछ न हो जाये । यह प्रश्न कि क्या आप एक सिद्धान्त को सत्य मानते हुए भी अपने कार्य-निष्पादन को उसके असर से अछूता रख सकते हैं… यदि आप एक जज हैं और कट्टर मुसलमान हैं और आपके सामने कोई ऐसा अपराधी पेश होता है जो अभी ईमान नहीं लाया और कभी लायेगा भी नहीं तो क्या आप उसे [ शायद अनजाने में ही ] अधिकतम सजा नहीं देंगे, और इसे अपना धार्मिक कर्तव्य नहीं मानेंगे… क्या एक शूद्र जज एक ब्राह्मण को अधिकतम दंड देकर प्रसन्नता का अनुभव नहीं करेगा--- बदला ले लिया । अब पत्रकार भी मनुष्य ही है तो वह कैसे अपनी विचारधारा से निरपेक्ष हो सकता है । लेकिन इस बात से उतनी परेशानी शायद न भी हो जितनी इस बात से होती है कि गंदा है पर धंधा है और पत्रकार भी, अन्य सभी की तरह इस सिद्धान्त को जीवित रह सकने का आधारभूत सिद्धान्त मानते हैं और इसीलिए एक ओर गोदी मीडिया है और दूसरी ओर चिन्दी मीडिया।
Ashwani Bansal: एक पत्रकार कितना भी निष्पक्ष होने की कोशिश कर ले फिर भी मेरी अपनी धारणाओं के कारण भी हो सकता है वो मुझे निष्पक्ष ना लगे। ऐसा इसलिए कि मेरी अपेक्षा उस पत्रकार से मेरे अपनी तरह किसी एक पक्ष की तरफ झुकाव की हो सकती है।
Iliyas Khan: अब पत्रकारिता एक धंधा बन गई है कभी एक जिम्मेदारी होती थी
Niraj Tripathi: प्रोफेशन और बिजनेस में जो बारीक सा अंतर था, वह अब नहीं रहा। डॉक्टर इलाज बेच रहे हैं, जज और वकील न्याय बेच रहे हैं यहां तक कि कथावाचक लोग भी भगवत्कथा बेच रहे हैं तो ऐसे में पत्रकार खबरें बेंचे तो क्या आश्चर्य है। अब कोई भी व्यापारी कम लागत और अधिक लाभ वाले प्रोडक्ट ही बेचेगा, यह भी स्वाभाविक है। कलयुग में कोई मर्यादा नहीं बची रह पाएगी,ऐसा गोस्वामी तुलसीदास जी ने लगभग पांच सौ साल पहले ही बता दिया था।
DrAnil Jain: जब भी आपको कोई खबर एकतरफा लगे, तो खुद से एक सवाल ज़रूर पूछें , क्या यह खबर वास्तव में एकतरफा है, या फिर यह सिर्फ मेरे अपने विचारों से मेल नहीं खा रही है?
इस सवाल को पूछना ही मीडिया की समझ की पहली और सबसे बड़ी जीत है।
Manjul Bhardwaj: पत्रकारिता कभी निष्पक्ष नहीं होती । जिसका कोई पक्ष ना हो वो पत्रकारिता नहीं एक वहम है, शिगूफा है। पत्रकारिता का अंतर्निहित पक्ष है न्याय,समता,शांति । जो शोषण ,अन्याय का पक्ष ले क्या वो पत्रकारिता है? या शोषण,अन्याय,हिंसा के खिलाफ आवाज़ ना उठाए क्या पत्रकारिता है? सत्य पत्रकारिता का पक्ष है।
Yogendra Mani Tripathi: पत्रकारिता केवल व्यवसाय और पेशा नहीं है। वह अपने समय की समस्याओं और समाज की वास्तविकताओं को देखने समझने की एक दृष्टि के साथ साथ उन सबको सबके सामने पेश करने की कला भी है। पत्रकारों के लिए अनुभूति की कोमलता और स्वच्छता की रक्षा के लिए जीवन के खुरदरे तथ्यों की उपेक्षा वर्जित है। आज भी कुछ पत्रकार विलक्षणता के विरुद्ध और सहज साधारण के साथ खड़े दिखाई देते हैं, उनमें बौद्धिकता का दंभ और विशिष्टता का पाखण्ड दिखाई भी नहीं देता।