"ABP न्यूज़ की डिबेट में चित्रा त्रिपाठी जवाब सुनने की बजाय 'शम्बूक बध' की अवधारणा का सहारा लेते हुए बीच में ही चीखने-चिल्लाने लगी"
🔖 डॉ शिवा नन्द यादव
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के प्रवक्ता DrJayant Jigyasu को Abp न्यूज चैनल पर सुना। जिसमें महिला एंकर चित्रा त्रिपाठी थीं। जयंत अपने अध्ययन, इतिहास बोधगम्यता, सहजता व बहुत ही विनम्र भाव से उस पार्टी का पक्ष रख रहे थे, जिसके वे प्रवक्ता हैं। जयंत की हिंदी के साथ-साथ उर्दू भाषा के शब्दों पर पकड़ अच्छी है। इसलिए उनके वक्तव्य अन्य प्रवक्ताओं से भिन्न होते हैं तथा दर्शकों के साथ-साथ प्रबुद्ध वर्ग को भी अपनी ओर खींचते हैं।
जयंत जिज्ञासु रा.ज.द. के प्रवक्ता हैं और चित्रा तमाम सवालों के साथ उनसे कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के विदेश मे दिये गये साक्षात्कार पर भी सवाल करतीं हैं। चित्रा जी को यह सवाल तो उसी बहस में मौजूद कांग्रेस के प्रवक्ता से करना चाहिए था। लेकिन फिर भी जयंत ने लोकतंत्र व इसके चौथे स्तंभ (मीडिया) व साम्राज्यवादी प्रवृत्ति पर भारतीय समाजवादियों की क्या राय रही है? इसको विस्तार से बताया। जिसमें उन्होंने डॉ लोहिया व प्रोफेसर आनन्द कुमार जैसे समाजवादियों का जिक्र किया। इस वीडियो में आप विस्तार से ये रोचक बातें सुन सकते हैं।
चित्रा जी को लगा कि जयंत तो उनके सवालों पर भारी पड़ रहें हैं और लालू यादव व उनकी पार्टी (RJD) की जो नकारात्मक छवि मीडिया व उनके जैसे पत्रकारों के माध्यम से गढ़ी गई है, उसे वे अपने इतिहास, भूगोल व राजनीति के ज्ञान से ध्वस्त कर रहे हैं। इसलिए वे शम्बूक बध की अवधारणा का सहारा लेते हुए बीच में ही रोक कर चीखने-चिल्लाने लगीं। चित्रा जी की जलन उनके इस प्रश्न में साफ दिखाई देती है जब वो कहती हैं कि, "जब आप इतनी अच्छी बातें करेंगे और ज्ञान देंगे तो पूछा जायेगा कि भूरा बाल साफ करो का नारा किसने दिया था?"
इस प्रश्न का जयंत उत्तर देने के लिए जैसे ही कुछ बोलते चित्रा यही सवाल बार-बार पूछते हुए इतना चिल्लातीं हैं कि किसी को कुछ स्पष्ट सुनाई ही न पड़े। जयंत बार-बार उनसे इस सवाल पर जवाब सुनने का आग्रह करतें हैं। लेकिन वो जयंत को बोलने ही नहीं देतीं। वो चाह भी यही रही थीं कि ये सवाल पूरे देश में गूंज जाये, और जवाब लोगों तक न पहुंचे। ताकी लालू यादव की दरबारी मीडिया द्वारा बनाई गई सवर्ण विरोधी छवि यथावत बनी ही रहे।
चित्रा त्रिपाठी को पत्रकारिता का कोई 'अ' 'ब' का कोई ज्ञान हो तब तो वे उनकी बात को पूरा सुनतीं। इनको कोई गैर भाजपाई प्रवक्ता अपने धैर्य, सादगी, विनम्रता, अध्ययन, इतिहासबोध आदि सद्गुणों से रिझा नहीं सकता।
कभी-कभी उर्दू की ग़ज़लें, शे'र, नज़्मे तो मैं भी देवनागरी लिपि के माध्यम से पढ़ता हूं, क्योंकी उर्दू की अपनी लिपि नस्तालीक़ (Nastaliq) है। जो मुझे नहीं आती। इसलिए चित्रा जी के लिए शायर ख़ुमार बाराबंकवी साहब के ग़ज़ल के दो शे'र समर्पित कर रहा हूं -:
इस सलीक़े से उन से गिला कीजिए,
जब गिला कीजिए हँस दिया कीजिए।
दूसरों पर अगर तब्सिरा कीजिए,
सामने आइना रख लिया कीजिए।।
जयंत का वहां ज़वाब क़ाबिल-ए-तारीफ़ था। शायद उस बद्तमीजी पर मैं भी अपना आपा खो बैठता। चित्रा और रूबिका लियाकत जैसे महिला एंकरों की थेथरई के लिए प्रियंका भारती जैसे प्रवक्ताओं को ही भेजना चाहिए, जो उनको उनकी ही भाषा में समझाया करे। भले ही बौध्दिक वर्ग के लोगों को उनका तरीका अच्छा न लगे।
मैं तमाम असहमतियों के बावजूद भी यहां पर जयंत के साथ कॉमरेड चे ग्वेरा के अंतिम क्षणों में कही गई पंक्तियों को लेकर खड़ा हूं। जिसमें कॉमरेड चे ने कहा था कि-:
"मैं क्यूबाई हूं, अर्जेंटीनी हूं, मैं पेरू का हूं, इक्वाडोर का हूं। दुनिया में जहॉं-जहॉं साम्राज्यवाद मानवता को रौंद रहा है। मैं वहॉं-वहॉं, उस मुल्क की सरहद पर हूं।"