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स्थानीय पत्रकार अगर सही रिपोर्ट करने लगें तो खबर को सनसनी बनने से रोका जा सकता है, गलत खबर को रोका जा सकता है

मिथिलेश धर

क्या करते हैं आप? पत्रकार हूँ। पत्रकार, अरे पत्रकारों के बारे में क्या कहूं। एक फलाने अखबार के पत्रकार हैं, वे तो बिना पैसा लिए कोई खबर छापते ही नहीं। जबसे गांव में हूँ, यह लाइन न जाने कितनी बार सुन चुका हूँ। पत्रकार हूं, अब तो यह बताना ही बंद कर दिया है। 


एक दो-महीने पहले पड़ोसी गांव के एक सज्जन अपना मामला लेकर आये थे। मैंने उनसे कहा कि यह तो स्थानीय मामला है, यहां के स्थानीय पत्रकारों से कहिए, इसका जवाब उन्होंने जो दिया, वह मुझे आश्चर्य में डालने वाला था। उन्होंने कहा कि फलाने अखबार का जो यहां का पत्रकार है, मैंने उसे हर मौके पर पैसे दिए, लेकिन मेरे मामले में उसे दूसरी पार्टी से ज्यादा पैसे मिल गये तो वह मेरी खबर छापने के लिए तैयार नहीं है। 


यह तो हाल है गांव के पत्रकारों का। कथित बड़े अखबारों के जिले में बैठे प्रतिनिधि/ब्यूरो तो और आगे हैं (सब नहीं)। अखबार में छपी एक गलत खबर के संदर्भ में जब मैंने उनसे पूछा कि बतौर पत्रकार आपको इसकी जांच नहीं करनी चाहिए थी, मेरे इस सवाल के जवाब में उन्होंने मुझसे पूछा-आप पत्रकारिता में कब से हैं, मैंने कहा यही कुछ 5-6 साल, उन्होंने कहा कि मैं 15 साल से इस लाइन में हूँ, मुझे मत सिखाइये। 


मैं नतमस्तक हो गया, हालांकि मेरी खबर के बाद उन्होंने खबर के माध्यम से अपनी गलती मानी। सनद रहे कि अगर स्थानीय पत्रकार सही रिपोर्ट करने लगें तो खबर को सनसनी बनने से रोका जा सकता है, गलत खबर को रोका जा सकता है, लेकिन दुर्भाग्य कि ग्रामीण पत्रकारिता में घुन लग गया है। पिछले हफ्ते मेरे मामा घर आये थे। कहने लगे कि मेरे यहाँ एक अखबार (जिले का बड़ा अखबार) का पत्रकार हर संडे को घर आ जाता है और कहता है कुछ खर्च-बर्च दीजिये। पेशे से अध्यापक मामा जी उसे पैसे दे भी देते हैं। कथा समाप्त हुई।