➤ विश्वदीपक
जो न्यूज़ चैनल – चाहे आजतक हो या फिर एबीपी न्यूज़ या कोई और – कल तक योगी की चरण वंदना कर रहे थे अचानक जाग कैसे गए? पिछले सात- आठ साल से फर्जी देशभक्ति, सांप्रदायिकता, नफ़रत का नशा पिलाने वाले संपादकों और उनके चैनल मालिकों को मिशनरी पत्रकारिता की याद कैसे आ गई?
दरअसल, इस मिशनरी कवरेज की एक ही दिशा है और वह है श्रीमान 56 इंच के खिलाफ पनप रहे गुस्से को डायवर्ट करना. बीजेपी हाईकमांड, जिसका अनिवार्य मतलब मोदी-शाह की जोड़ी है, के इशारे के बिना यह सत्याग्रह नहीं हो सकता. हो सकता है क्या ?
हाथरस की कवरेज को बीजेपी के आंतरिक सत्ता संघर्ष और अंतर्विरोध के आईने में देखिए सब साफ हो जाएगा.हाथरस के बहाने मोदी - शाह ने योगी को काफी हद तक निपटा दिया. इस एक तीर से कई निशाने सध गए मसलन :
• 2024 में दिल्ली के लिए योगी की दावेदारी खत्म. आरएसएस, बीजेपी का एक धड़ा योगी को मोदी के विकल्प के रूप में देख रहा था. 2024 में मोदी का रिटायरमेंट होगा कायदे से.
• योगी राम मंदिर का क्रेडिट लेने की कोशिश कर रहे थे. इसका क्रेडिट श्रीमान 56 इंच को ही लेना है. अब क्रेडिट छोड़िए, कुर्सी बच जाए बहुत है.
• इस बहाने अब यूपी में सीएम बदलने की बात की जा सकती है. दबाव काफी समय से है. ठाकुरों के बर्चस्व के खिलाफ़ बीजेपी की दलित और ब्राह्मण लॉबी एक है अब. शर्मा मौर्या साथ –साथ हैं.
• योगी की कुशल प्रशासक वाली इमेज बना रहे थे. जोरदार डेंट लगा (कुछ समय पहले ही यूपी को ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में ऊपर के पैमाने पर अच्छे अंक मिले थे).
• उत्तर प्रदेश पुलिस और प्रशासन में ठाकुरों के बर्चस्व से दूसरे प्रेशर ग्रुप परेशान थे. उन्होंने ही रिपोर्टर की बातचीत को टेप करके लीक कराया.
मतलब की बात यह है कि दलित कार्यकर्ताओं, अंबेडकरवादियों को टीवी मीडिया के बहकावे में नहीं आना चाहिए. यह मीडिया आपका नहीं है. इतनी सी बात है. लोगों को बीच ईमानदारी से काम करना होगा वर्ना पहले भी इस्तेमाल होते रहे हैं, आगे भी होंगे.