हमारी, आपकी, सबकी आवाज

जाति नहीं जाती: हमें बचपन से ही सिखाया जाता है, किस जाति के व्यक्ति को आदर देना है और किसका तिरस्कार करना है

पवन तिवारी

अभी एक न्यूज़ चैनल पर देख रहा था कि एक महिला रिपोर्टर के पूछने पर ऊँची जाति की महिलाएं कहती हैं कि ना-ना बहिनी, हमाये हिंया तो हम सब एक दूसरे को अपने परिवार का ही हिस्सा समझते हैं, जइसे उनकी बिटिया, वइसे हमाई। ये सुन कर मुझे अपने साथ बीती एक घटना याद आ गई, कहानी थोड़ी लम्बी है, पर है बड़ी मज़ेदार। हँसी ना आये तो सारा पैसा वापिस।


तो साधो, बात 2015 की है, मैं अपने एजुकेशन लोन के लिए अयोध्या में रुका हुआ था, बैंक की कार्यवाही में ज्यादा दिन लगने के कारण मैं कुछ दिनों के लिए अयोध्या से सुल्तानपुर अपने मामा जी के घर चला गया।सुल्तानपुर में मेरे तीनों मामा जी के घर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर ही हैं। मेरा लगाव ज़्यादातर बड़े मामा जी के परिवार से था तो इसीलिए मैं उन्हीं के घर रुक गया। घर में मामा, मामी, भइया, भाभी और उनकी 4 साल की बेटी, ये 5 लोग ही रहते थे। जुलाई का महीना और ऊपर से मॉनसून की बारिशें, चारो तरफ़ के कीचड़ से बड़ी ही फ्रस्ट्रेशन होती थी, मग़र मैं ननिहाल की मौज में सब कुछ भूल चुका था।


एक दिन सुबह के करीब 11 बज रहे होंगे कि तभी एक बूढ़े अंकल आये और मामा का नाम लेकर उनके बारे में पूछने लगे, मैंने बोला कि मामा जी कहीं गए हुए हैं, मामी बगल वाली मामी के यहाँ गयीं हैं और भाभी किचन में हैं। तो वो बोले कोई बात नहीं मैं शाम को आऊँगा।


मुझे पता नहीं था, मग़र भाभी ये सारी वार्तालाप किचन से ही देख-सुन रहे थे। जैसे ही मामी वापिस आये, भाभी उन्हें कहने लगे कि देखो मम्मी, फ़लाने (उनका नाम नहीं याद मुझे) आये थे, और प्रिंस (मेरा निकनेम है ये) ने उन्हें कोई पएलगी-आसीस नहीं कि और ऐसे ही बात करते रहे। तो मैंने उन्हें बोला कि यार मुझे क्या पता कि वो कौन थे, कहाँ से थे, ज़्यादा दिक्कत है तो आप बता दो, फ़िर मैं अगली बार से इस बात का ध्यान रखा करूँगा।


तो मामी बोले कि पैर छूने जरूरी नहीं है, तुम नमस्ते बोल दिया करो, क्योंकि सब जानते हैं कि तुम शहर से आये हो, इसलिए कोई ऑब्जेक्ट नहीं करेगा। मैंने बोला कि ठीक है, मैं अब से ध्यान रखूँगा। 2 दिन ही बीते थे कि सेम वही वाकया हुआ। लगभग उसी पहर की बात है कि एक अत्यंत बूढ़ी महिला, जिसके कूबड़ निकला हुआ था, एक लाठी के सहारे चलती हुई घर की चौखट पर खड़ी होकर मामी को मिसिराइन-मिसिराइन (क्योंकि मेरे ननिहाल वाले मिश्रा हैं) कह कर बुलाने लगीं।


मैं उठ कर उनके पास गया, उनके पैर छुए, और तभी देखा कि वो अचानक से सिहर सी गयीं थीं। मैंने बोला कि मामी गाय दुहने गई हैं, भाभी किचन में हैं, ये लीजिये आप तब तक चेयर (कुर्सी) पर बैठिये, मैं भाभी को बुलाता हूँ। मेरे इतना कहने के बावजूद भी वो चेयर पर नहीं बैठ रहीं थीं, जब मैं भाभी को बुला कर लाया, तब वापिस आकर देखा तो वो उसी चौखट से थोड़ा अंदर आकर दीवार के साथ टेक लगाकर वहीं जमीन पर ही बैठ गईं थीं।


मैंने एक बार और कोशिश की, मग़र इस बार भाभी ने मुझे रोक दिया और इशारा किया कि वो जहाँ बैठी है वहीं बैठी रहने दो। मुझे बड़ा ही अजीब लगा।तभी मामी जी भी आ गए। अब मामी और भाभी, दोनों कुर्सी पर और वो बूढ़ी महिला वहीं जमीन पर।


कुछ देर गाँव-देस की बात करने के बाद भाभी उठीं और किचन से उनके लिए एक पॉलीथिन में खाना लेकर आयीं और उस बूढ़ी महिला की झोली में ऊपर से फेंक दिया। और फ़िर सीढ़ियों के पास से एक जंग (स्टील पर लगने वाला सफ़ेद रंग का जंग) लगा हुआ स्टील का गिलास उठाया और उसमें पानी लाकर उसे दिया। मुझे हैरानी इस बात की हुई कि उस बूढ़ी महिला ने उस गिलास को भी ऊपर करके पानी पिया। अब मुझे हल्का-हल्का गुस्सा आ रहा था। क्योंकि जमीन पर बैठने और झोली में खाना लेने तक तो सब ठीक था, मग़र इतने ख़राब गिलास में पानी देना, किसी को ज़हर देने के समान था।


जैसे ही वो औरत गई, इस से पहले कि मैं, मामी और भाभी पर गुस्सा करता, भाभी जोर-जोर से हँसने लगीं और मामी को बताने लगीं कि मम्मी, प्रिंस ने उसके पैर छू लिए थे। मैं भड़क गया, मैंने बोला कि आप पहले ये तय क्यों नहीं कर लेते, कि पैर छूना भी है या नहीं। कभी बोलते हो कि फ़लाने आये थे, तुमने पैर नहीं छुए, और कभी हँसते हो कि हो-हो-हो-हो तुमने तो फलानी के पैर छू लिए।


तो मामी ने बताया कि बेटा वो नीची जाति की है, वो आँगन की घास वगेरह नोचने आयी थी, इन लोगों को तो हम छूते भी नहीं हैं, ना ही उन्हें हमारे बराबर बैठने का अधिकार है और खाना खाने या पानी पीने की तो बात ही बहुत दूर की है। उन्होंने बताया कि गाँव के लगभग हर ऊँची जाती वाले ने इन लोगों के लिए लगभग उसी तरह का एक स्टील का गिलास नेवासा (रखा) हुआ है, ताकि उनके हाथ घर के बर्तनों में ना लगें।


तो मैंने कहा कि ठीक है मामी, मैं आपकी बात से सहमत हूँ कि बड़ी जाति वाले के पैर छूने हैं और छोटी जाति वाले के नहीं छूने हैं। मग़र मुझे एक बात बताओ, मुझे पता कैसे चलेगा कि जो व्यक्ति आया है वो ऊँची जाति से है या नीची जाति से, क्योंकि जब पता चलेगा तभी तो पैर छूने या ना छूने की नौबत आएगी ना।


अब सब हँस रहे थे, और मैं बैठा ये सोच रहा था कि उधर MIT के विद्यार्थी नॉन-मूविंग पार्ट्स वाले आयनिक इंजन पर काम कर रहे हैं, और यहाँ हमारे देश में हम यहीं पर अटके हुए हैं कि हमें किसका आदर करना है और किसका तिरस्कार?