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बीजेपी नेताओं में अब इतना अहंकार आ गया है कि इन्हें न किसी पत्रकार की गरिमा की चिंता है न दर्शकों की

➤ शंभूनाथ शुक्ल

अभी मैंने NDTV खोला। अखिलेश शर्मा एंकर थे और राज्यसभा में बिना विपक्ष के पास हुए बिलों को लेकर डिबेट हो रही थी। कांग्रेस की सांसद अमी याज्ञिक और भाजपा से कोई ले. ज. वत्स भाग ले रहे थे। पहला नंबर वत्स का आया। उन्होंने एंकर को और दर्शकों को संबोधित करते हुए कहा- “देखो!” मैंने इतना सुनते ही टीवी बंद कर दिया। हमारे समय कोई भी नेता, विधायक, सांसद, मंत्री या नौकरशाह किसी भी पत्रकार से यूँ देखो कह कर बात नहीं करता था। देखिए, सुनिए जैसे सम्माननीय संबोधन होते थे। 


एंकर अखिलेश को मैं निजी तौर पर जानता हूँ, वे बेहद सौम्य और मृदु हैं। उनका झुकाव भी केंद्र से दक्षिण का है। संभव है, सांसद वत्स हरियाणा के हों और तर्क दे सकते हैं, कि वहाँ की बोली ही ऐसी है। पर मैंने हरियाणा के नेताओं- पंडित भगवत दयाल शर्मा, ताऊ देवी लाल, चौधरी वंशी लाल, भजन लाल, रामविलास शर्मा, मास्टर हुकुम सिंह, ओम प्रकाश चौटाला और दुष्यंत चौटाला तक सबको देखा है, सबसे मिला भी हूँ। इन सबकी बोली मीठी थी और है। पत्रकारों के प्रति ये सम्मान का भाव रखते थे। ताऊ देवीलाल सजातीय पत्रकारों को ज़रूर तू बोलते थे। किंतु उस तू में लाड़ था, हिक़ारत नहीं। 


बीजेपी के नेताओं में अब इतना अधिक अहंकार आ गया है, कि इन्हें न किसी पत्रकार की गरिमा की चिंता है न दर्शकों की न अपने वोटरों की। मुझे लगता है, अब ये चेदिराज शिशुपाल की स्थिति में आ गए हैं।