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पत्रकारिता के छात्रों को सवाल पूछने की आदत डालनी चाहिए, कुत्तों की तरह भौंकना जर्नलिज्म नहीं है

असितनाथ तिवारी

पत्रकारिता के एक छात्र ने मजेदार सवाल पूछा है। सवाल है ‘सर, भारत में पढ़े-लिखे लोगों की संख्या कम नहीं है बावजूद इसके मोदी सबको उल्लू कैसे बना लेता है?’ मेरा स्पष्ट मानना है कि सवालों को न तो टाला जाना चाहिए और ना ही सवाल पूछने वाले को। सवाल तो बस जवाब मांगते हैं। सवालों को टालने और सवालों से भागने वाले अज्ञानी, मूर्ख और धूर्त लोग होते हैं। हां, अगर आपके पास जवाब नहीं है तो आप कह सकते हैं कि मेरे पास इसका जवाब नहीं है।


पत्रकारिता के छात्रों को सवाल पूछने की आदत डालनी चाहिए। एक अच्छा सवाल कई घंटों के कुकुरभौं से बेहतर होता है। गीदड़ों की तरह उछलना, गली के कुत्तों की तरह भौंकना और पागलपन के दौरे का शिकार होना पत्रकारिता नहीं है। पत्रकारिता सवाल पूछने का पेशा है। सवाल सदाचारिता से निकलते हैं, धतकर्मों से नहीं। बीमार दिमाग़ अंधश्रद्धा का गुलाम होता है और स्वस्थ दिमाग विमर्श करता है, सवाल करता है। स्वस्थ वातावरण के लिए सवालों का उठना और उन सवालों के जवाबों का आना जरूरी होता है, तो छात्र का सवाल है कि भारत में पढ़े-लिखे लोगों की संख्या कम नहीं है बावजूद इसके मोदी सबको उल्लू कैसे बना लेता है?


मेरा जवाब बड़ा स्पष्ट था। मैंने कहा भारत में पालन-पोषण का माहौल ही विकृत है। हमारा परिवार, हमारे रिश्तेदार और हमारा समाज हमें विकृतियों के साथ गढ़ता है। मसलन एक हिंदु परिवार में बच्चे को बताया जाता है कि मुसलमान ख़राब होते हैं। ठीक ऐसे ही एक मुस्लिम परिवार में बताया जाता है कि हिंदु ख़राब होते हैं। मुस्लिम बच्चों को बताया जाता है कि हिंदु उनके दुश्मन होते हैं और इस्लाम को इनकी वजह से बड़ी कुर्बानियां देनी पड़ी हैं। बड़ी संख्या में मुसलमानों को अपनी जान गंवानी पड़ी है।


ठीक इसी तरह हिंदु परिवारों में बताया जाता है कि मुसलमान आक्रांता हैं। मुसलमानों ने हिंदुओं पर हमले किए, लाखों हिंदुओं को मारा, उनकी बहू-बेटियों की इज्जत लूटी, जबरन धर्म परिवर्तन करवाया। मुसलमान निष्ठुर होते हैं। ये किसी का भी सिर कलम कर लेते हैं। वगैरह-वगैरह। हिंदु धर्म को मुसलमानो से खतरा है।


एक-दूसरे के रीति-रिवाजों को लेकर भी नफरत का वातावरण तैयार है और हमारी नस्लें उसी वातावण का शिकार हैं। यही बच्चे बड़े होते हैं। यही बच्चे पढ़-लिखकर डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर, वकील, पत्रकार, बैंकर, दुकानदार, कलाकार समेत और भी बहुत कुछ बनते हैं।


बचपन से जो बताया गया है वो आपके अचेतन में बना रहता है। यही अचेतन मन आपके चेतन मन को रह-रह कर सतर्क करता है। मुसलमानों को हिंदुओं से और हिंदुओं को मुसलमानों से।


अचेतन मन में बैठी तमाम बातें अवचेतन में जाकर कुंठा पैदा करती हैं। मोदी ने उसी कुंठा को बड़े पैमाने पर उभारा। राष्ट्रीय राजनीति में मोदी का उभार दंगों की देन है। गुजरात दंगों के बाद मोदी हिंदुत्व की राजनीति का बड़ा चेहरा बने। इन दंगों में बड़ी संख्या में मुसलमानों का कत्ल हुआ, उनकी बहू-बेटियों का बलात्कार हुआ। बहुसंख्यक हिंदुओं की अवचेन मन की कुंठाएं थोड़ी शांत हुईं। अब अवचेन की इन्हीं कुठाओं को ठंडा होने का रास्ता मिल गया। कुंठित मन ने ये मान लिया कि कुंठा को थोड़ी-बहुत राहत मोदी से ही मिल सकती है। इन्हीं कुंठाओं ने नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय राजनीति में आमंत्रित किया और उनका स्वागत किया। 


यही कुंठा उनके नोटबंदी जैसे राष्ट्रघाती फैसले को राष्ट्रवादी साबित करने के लिए चीख-चिल्लाहटों में निकलती है। यही कुंठा पैदल चल रहे और भूख-प्यास से मर रहे मजदूरों का मजाक उड़वाती है। यही कुंठा भारतीय जमीन पर चीन के कब्जे को चीख-चीख कर झुठलाती है। यही कुंठा देश की तबाही और बर्बादी को भी विकास के तौर पर देखने की विवशता पैदा करती है। इसलिए, नरेंद्र मोदी बहुत ही आसानी से पढ़े-लिखे तबके को उल्लू बना लेते हैं।


मेरे इस जवाब से छात्र संतुष्ट दिखा तो मुझे शंका हुई। मैंने उसे सुझाव दिया कि इस जवाब का अपने विवेक से आकलन करे और फिर इनमें से सवालों को जन्म दे। स्वस्थ विमर्श के लिए सवालों और जवाबों का होना बहुत जरूरी है।