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टाइम मैगजीन में मोदी को शामिल करने पर भारतीय मीडिया ने जिस तरह की कवरेज की, उसे हफिंगटन पोस्ट ने बताया सर्कस

 ➤कृष्ण कांत

हफिंगटन पोस्ट ने लिखा है कि टाइम मैगजीन में पीएम मोदी को शामिल करने के बारे में भारतीय मीडिया ने जिस तरह कवरेज की, 'उस सर्कस के लिए उन्हें अगले ओलंपिक में क्वालिफाई कर जाना चाहिए'. 


दरअसल, टाइम मैगजीन ने 100 प्रभावशाली लोगों की सूची में भारत के प्रधानमंत्री को शामिल तो किया, लेकिन इसकी वजह सकारात्मक नहीं, बल्कि नकारात्मक थी. टाइम ने लिखा है कि नरेंद्र मोदी 'भारत के विविधता से भरे लोकतंत्र को अंधेरे में धकेल रहे हैं.' लेकिन ज्यादातर भारतीय मीडिया ने इसे ऐसे ढंग से पेश किया जैसे ये कोई सम्मान और उत्सव की बात हो. 


टाइम मैगजीन ने पीएम मोदी की कठोर आलोचना करते हुए  लिखा है, "लोकतंत्र के लिए मूल बात केवल स्वतंत्र चुनाव नहीं है. चुनाव केवल यही बताते हैं कि किसे सबसे ज़्यादा वोट मिले. लेकिन इससे ज़्यादा महत्व उन लोगों के अधिकारों का है, जिन्होंने विजेता के लिए वोट नहीं किया. भारत पिछले सात दशकों से दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बना हुआ है. यहां की 1.3 अरब की आबादी में ईसाई, मुसलमान, सिख, बौद्ध, जैन और दूसरे धार्मिक संप्रदायों के लोग रहते हैं. ये सब भारत में रहते हैं, जिसे दलाई लामा समरसता और स्थिरता का एक उदाहरण बताकर सराहना करते हैं."


पत्रिका ने आगे लिखा, "नरेंद्र मोदी ने इस सबको संदेह के घेरे में ला दिया है. हालांकि, भारत में अभी तक के लगभग सारे प्रधानमंत्री 80% हिंदू आबादी से आए हैं, लेकिन मोदी अकेले हैं जिन्होंने ऐसे सरकार चलाई जैसे उन्हें किसी और की परवाह ही नहीं. उनकी हिंदू-राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी ने ना केवल कुलीनता को ख़ारिज किया बल्कि बहुलवाद को भी नकारा, ख़ासतौर पर मुसलमानों को निशाना बनाकर. महामारी उसके लिए असंतोष को दबाने का साधन बन गया. और दुनिया का सबसे जीवंत लोकतंत्र और गहरे अंधेरे में चला गया है."


दरअसल, भारत के लिए ये शर्म की बात है जिसे दुनिया के सफल और उदार लोकतंत्र में से एक गिना जाता है, उसकी चर्चा तमाम अलोकतांत्रिक कृत्यों की वजह से हो. सबको खामोश करने और आलोचना न होने देने का चलन पूरे देश को झूठ के अंधकार में धकेल रहा है.