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लोकप्रियता हासिल करने के लिए रिपब्लिक टीवी ने जिन तरीकों का इस्तेमाल किया है, मैं उनका समर्थन नहीं करता

अभिरंजन कुमार

रिपब्लिक टीवी ने जिस तरह से चीखने चिल्लाने वाली पत्रकारिता शुरू की है, उसका समर्थन मैंने कभी नहीं किया, लेकिन टीआरपी से उसने खिलवाड़ किया है या नहीं, यह जांच का विषय है और मुंबई पुलिस जो कि स्वाभाविक रूप से उद्धव सरकार की एजेंट है, वह इस जांच में सक्षम नहीं है। 


मुंबई पुलिस की निष्पक्षता संदिग्ध है और जिस अफसर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की है, पिछले कुछ मामलों का ट्रैक रिकॉर्ड देखते हुए उसकी नीयत और दक्षता भी संदिग्ध है। एक चैनल पर उसका इंटरव्यू देखा तो वह अफसर निस्तेज लगा और लगा कि वह केवल और केवल अपने सियासी आकाओं का हुकुम बजा रहा है।


जहां तक आज तक का सवाल है, तो कुछ समय पहले मैंने लिखा था कि देश में न्यूज चैनल कहलाने का अधिकारी अगर कोई एक चैनल है, तो वह यही चैनल है, लेकिन आज अपनी उस बात को वापस ले रहा हूँ। मुझे अपनी राय को संशोधित करते हुए कोई हिचक नहीं है। मैंने यह राय तब बनाई थी, जब आज तक का ऐसा पतन नहीं देखा था। लेकिन रिपब्लिक टीवी की लोकप्रियता से परेशान होकर आज तक प्रतिदिन गिरते जाने का कीर्तिमान कायम करता जा रहा है। चाहे वह रिया चक्रवर्ती का मैनेज्ड इंटरव्यू हो या फिर हाथरस कांड की पूर्व नियोजित रिपोर्टिंग हो, आज तक ने खुद को शर्मसार किया है। और आज तो टीआरपी मुद्दे पर आज तक जिस तरह की बायस्ड कवरेज कर रहा है, वह पतन के साथ साथ फ्रस्ट्रेशन की भी पराकाष्ठा है।


टीआरपी मीटर में क्या हुआ, मुझे नहीं पता, लेकिन आज का सच यह है कि रिपब्लिक टीवी हिंदी का सबसे लोकप्रिय चैनल है, क्योंकि किसी चैनल की लोकप्रियता का पता केवल टीआरपी मीटर से ही नहीं, पब्लिक के मूड से भी चल जाता है। यह अलग बात है कि इस लोकप्रियता को हासिल करने के लिए रिपब्लिक ने जिन तरीकों का इस्तेमाल किया है, उनका मैं समर्थन नहीं करता। मैं मानता हूं कि रिपब्लिक टीवी ने इधर कुछ महीनों में मुद्दे सही उठाए, लेकिन तरीका गलत अपनाया।


जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि आज तक के साथ भी मेरी सहानुभूति रही है, इसलिए उन्हें इस तरह गिरता देखकर अच्छा नहीं लग रहा। ज़रा देखिए तो आज आज तक अपने अच्छे अच्छे एंकरों का कितना गंदा इस्तेमाल कर रहा है। 


यह स्थिति दुखद और शर्मनाक तो है ही, इस बात का भी सबूत है कि भारत का मीडिया आज अपने बिजनेस हितों के लिए न केवल पत्रकारिता के बुनियादी मूल्यों को तार तार कर रहा है, बल्कि देश और दर्शकों के साथ भी धोखा कर रहा है। पत्रकारिता का ऐसा घिनौना रूप प्रकारांतर से हमारे लोकतंत्र को भी गंभीर क्षति पहुंचा रहा है और आगे भी पहुंचाएगा। मैं इस स्थिति से शर्मिंदा, हतप्रभ और दुःखी हूं। धन्यवाद।