हमारी, आपकी, सबकी आवाज

सभी को एक ही तराजू में तौलना ठीक नहीं, मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है, था और रहेगा

आनंद तिवारी

आज भी मीडिया में निष्पक्ष, बेहतरीन, तथ्यों की परख रखने वाले, मृदुभाषी शालीनता से रिपोर्टिंग करने वाले, हर खबर की तह तक जाने का माद्दा रखने वाले, अच्छा लिखने पढ़ने सुनने वाले रिपोर्टर मीडिया की साख बचाए हुए हैं और जब तक मीडिया में रहेगे वो अपना यह प्रयास जारी रखेंगे।


जो बोलते है मीडिया के हमाम में सब नंगे है और आज जमूरा पत्रकारिता हो रही है, मीडिया कबड्डी हो रही है, मैं उन्हें बोलना चाहता हूं कि यही वही मीडिया थी जिसने जेसिका लाल, शिवानी भटनागर, नीतीश कटारा हत्याकांड, निठारी कांड, निर्भया कांड और ऐसे न जाने कितने हजार  बहुचर्चित और कई छोटे बड़े मामलों में पूरी ईमानदारी साफगोई, निर्भीकता सत्यता सटीकता तथ्यों के साथ स्टोरी की है।  


मुझे भी गुस्सा आता है मीडिया का एक नया रूप देखकर, इसका मतलब कतई यह नही की सभी मीडिया को एक ही तराजू मे तौला जाए, दर्शक के मन मस्तिष्क में हम जैसा दिखाएंगे वैसी ही छवि पेश होगी बिल्कुल सही है। 


मैं उन लोगों का भी पुरजोर विरोध करता हूं कि जो बोलते हैं मीडिया ऐसी है, वैसी है, मदारी का खेल है, कार्टून चैनल्स है, वो लोग भूले न कि इसी मीडिया को आप अपने हक की लड़ाई के लिए आवाज़ लगाते हो, यही वो मीडिया है जो सर्दी गर्मी बरसात में अपने घर परिवार की परवाह किये बगैर बॉर्डर से लेकर सड़कों तक सच दिखाने, सिस्टम की खामियों को उजागर करने, आपको आपका हक दिलाने रिपोर्टिंग करती है। तंग गलियों से लेकर आलीशान घरो तक का सच दिखाने का माद्दा रखती है।


चूंकि ये मेरा पेशा है इस पेशे में मुझे रोजगार मिला है, सिर्फ मुझे नही मेरे जैसे हजारों मीडियाकर्मियों को उस वक़्त पीड़ा होती है जब सभी मीडिया को एक नजर से देख जाता है, जोक्स बनाकर मीम बनाकर सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर चुटकियां ले जाती हैं।


आपके हमारे शहर में भी चंद ऐसे किरदार होंगे जिनसे आप हम इत्तेफाक नही रखते है पर इसका कतई यह मतलब नहीं कि पूरे शहर में ही खोट है।मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है, था और रहेगा।