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देश की सोच को खराब करने के लिए टीआरपी और देश के टॉप फाइव चैनल सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं

रविकांत ठाकुर

मीटर का गणित  -135 करोड़ की आबादी वाले देश में टीआरपी को मापने के लिए बस तीस हजार मीटर पूरे देश में लगे, यही 30000 मीटर तय करेंगे पूरा देश के लोग टीवी पर क्या कंटेंट देखना पसंद करता है, कौन सा चैनल देखना पसंद करते हैं, 

 

औसत का खेल- अब इस इस तरह से समझ लीजिए कि - करोड़ों की आबादी वाले दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में बस 2 से 3000 मीटर लगे, मैं हिमाचल प्रदेश में हूं करीब 70लाख की आबादी वाले हिमाचल प्रदेश में बस 40 से 50 मीटर लगे जिन लोगों के घर में के मीटर लगते हैं , यही 50 लोग तय करते हैं पूरा हिमाचल टीवी पर क्या देखता है, 


कंटेंट खराब की वजह- यह 50 लोग कौन है यह भी बहुत मायने रखता है, अगर यह 50 लोग बीजेपी सपोर्टर हैं तो जाहिर सी बात है कि यह दिनभर रिपब्लिक और जी न्यूज़ ही देखेंगे, अगर इन 50 लोगों में ज्यादा लोग कम पढ़े लिखे हैं तो जाहिर सी बात है इन घरों में नाग नागिन चीखने चिल्लाने वाली डिबेट ज्यादा देखी जाती है, यानी अगर आपके घर में मीटर नहीं लगा है और आप बहुत जीडीपी और अर्थव्यवस्था और बेरोजगारी वाले शो देखते हैं तो आप जैसे दर्शकों के लिए टीआरपी में कोई मायने नहीं, 


प्रोड्यूसर की मजबूरी - या तो हमारा टीआरपी सिस्टम खराब है या हमारे देश के लोगों की सोच खराब है,  इस देश का की टीआरपी कहती है  देश  में ज्यादा लोग भूत प्रेत, नाग नागिन अंधविश्वास चीखने चिल्लाने वाली बेसिर पैर की बहस देखना सबसे ज्यादा पसंद करते हैं,यही वजह है कि न्यूज़ रूम के अंदर बैठा प्रोड्यूसर  इस तरह के घटिया शो बनाने पर मजबूर हो जाता है ,क्योंकि यही टीआरपी चैनल को विज्ञापन दिलाती है और इसी विज्ञापन की आमदनी से चैनल के कर्मचारियों की सैलरी आती है उनका घर चलता है, अब आप प्रोड्यूसर को दोष मत देना कि क्यों इतने खराब शो बनाते हैं , क्योंकि टीआरपी के मुताबिक भारत के ज्यादातर लोग इसी तरह के घटिया शो देखना पसंद करते हैं,


इंटरनेट से सीखे टीवी-  टीवी के ठीक  उलट आप यूट्यूब और इंटरनेट पर कुछ भी देखते हैं तो आपका एक एक व्यू और क्लिक दर्ज होता है, यही वजह है कि यूट्यूब पर रवीश को भी, संदीप चौधरी को भी मिलियंस व्यू मिलते हैं और अर्णब गोस्वामी और सुधीर चौधरी को भी व्यू मिलते हैं, लेकिन टीवी की टीआरपी कहती है इस देश के लोग सिर्फ चीखने चिल्लाने वाली बहस ज्यादा देखते हैं और जो सार्थक बहस करता है बेरोजगारी पर जीडीपी पर उन्हें देश के लोग नहीं देखते,


टीआरपी पर अब सवाल क्यों- अब तक यह टीआरपी सिस्टम मठाधीश चैनलों को इसलिए मंजूर था 4-5 चैनल टॉप फाइव में ऊपर नीचे होकर हजारों करोड़ रुपए के विज्ञापन हासिल कर रहे थे, लेकिन अब कुछ नए खिलाड़ियों ने टीआरपी के खेल को समझ लिया, खराब कंटेंट दिखाकर और चोर दरवाजे से रेटिंग के सिंहासन पर कब्जा कर लिया तो अब इन मट्ठाधीश को इस सिस्टम से तकलीफ होने लगी लेकिन सच यही है कि टीआरपी का सिस्टम पहले भी खराब था आज भी खराब था देश के कंटेंट को खराब करने के लिए देश की सोच को खराब करने के लिए यह टीआरपी और देश के तमाम टॉप फाइव चैनल सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं