Tuesday, October 13, 2020

मीडिया ने भारत के लोकतंत्र की हत्या की है, भविष्य की कोई भी लड़ाई बग़ैर हत्यारे चैनलों से लड़े बग़ैर नहीं हो सकती

 ➤रवीश कुमार

"लक्ष्य समझिए। कठिन बात नहीं है। आपकी ज़मीन और आपका पैसा, हिंदुस्तान के दो तीन सबसे बड़े अरबपति चाहते हैं। पुराने समय में कठपुतली का शो होता था, याद है आपको? कठपुतली चलती थी पीछे से कोई चलाता था उसको, धागे बंधे होते थे। रावत जी आपने कहा मोदी जी की

सरकार है। भाइयों और बहनों ये मोदी सरकार नहीं है। ये अडानी और अम्बानी की सरकार है। नरेंद्र मोदी जी को अडानी और अम्बानी चलाते हैं। नरेंद्र मोदी जी को अडानी और अम्बानी जीवन देते हैं, कैसे? मीडिया में नरेंद्र मोदी जी का चहरा दिखा के, 24 घंटे। सीधा सा रिश्ता है। नरेंद्र मोदी जी इनके लिए ज़मीन साफ़ करते हैं और ये पूरा समर्थन नरेंद्र मोदी जी को मीडिया में देते हैं।" यह बयान राहुल गांधी का है। 


किसी राजनीतिक दल के लिए अंबानी और अडानी का नाम लेना आसान नहीं है। उन्हीं की पार्टी में कई लोग इनके आदमी की तरह कहे जाते हैं। कई बार दबी ज़ुबान में। कई बार खुली ज़ुबान से। राहुल गांधी का यह बयान कभी उनका भी इम्तहान लेगा। फिलहाल जिस देश के मीडिया में जहां चैनलों के मालिक और एंकर अडानी और अंबानी का नाम लेने से पहले ही कांप जाते हैं, उस देश में राजनीतिक मंच से इसे मुद्दा बना देना कम जोखिम का काम नहीं होगा। 


अंबानी और अडानी भी असहज महसूस कर रहे होंगे कि इससे तो एक दिन जनता में भी इन दोनों का नाम लेकर बोलने में साहस आ जाएगा। इंटरनेट सर्च करेंगे तो एक बयान मिलेगा। कांग्रेस और भाजपा दोनों मेरी दुकान हैं। क्या भारत की राजनीति में कोरपोरेट की गुलामी से कोई नई शुरूआत हो रही है या कोई कोरपोरेट का कोई नया गठबंधन बनने वाला है? यह भी सवाल है। बोलना आसान है। इन्हें विस्थापित करना आसान नहीं है। 


मैं कई बार कह चुका हूं कि मीडिया ने भारत के लोकतंत्र की हत्या की है। चैनलों में जो होता है वह लोकतंत्र की हत्या का ही सीधा प्रसारण होता है। नए भविष्य की कोई भी लड़ाई बग़ैर हत्यारे चैनलों से लड़े बग़ैर नहीं हो सकती है। यह लड़ाई सिर्फ विपक्ष को ही नहीं, जनता को भी लड़नी होगी। यह लड़ाई लाठी डंडे की नहीं होगी। विचारों और समझ की होगी। बेरोज़गार से लेकर किसान तक सबने देख लिया कि इन चैनलों के सामने उनके जनता होने का कोई मोल नहीं है। 


जनता चैनलों और बाकी प्रेस से घिर चुकी है। उसका घेरा कसता जा रहा है। इससे पहले कि माध्यमों के इस महाजाल से उसका गला हमेशा के लिए घोंट दिया जाए जनता को फंदा हटाना पड़ेगा। यह आसान नहीं होगा। इसके लिए एक ज़िम्मेदार पाठक और दर्शक बनाने में पसीने छूट जाएंगे। अभी ऐसा नहीं लगता है। जनता के भीतर कई तरह के पूर्वाग्रह हैं। जाति से लेकर धर्म तक के। मीडिया इसके बहाने फंदा कसता रहेगा। अच्छी बात है कि विपक्षी दल के नाते राहुल गांधी मीडिया को लेकर अपनी बात रख रहे हैं। बस उस बात पर बहस नहीं हो रही है। उनके पूजा करने पर बीजेपी कितनी आक्रामक हो जाती है मगर मीडिया के स्वरूप पर वह बहस करने नहीं आएगी। गेंद को विकेट कीपर के हाथ में जाने देती है। 


इस बीच कोरोना महामारी के बहाने जुर्माने के नाम पर गरीब जनता से करोड़ों वसूले जा रहे हैं। गुजरात में 53 करोड़ से अधिक का जुर्माना वसूला गया है। पान और चाय की दुकानें सील हो गई हैं। हरियाणा, पंजाब में किसानों का आंदोलन चल रहा है। चैनलों पर ग़ायब है। बेरोज़गार नौजवान हर दिन अपनी समस्या के लिए मीडिया से संपर्क कर रहा है, निराशा हाथ लग रही है। निजीकरण के फैसले लिए जा चुके हैं। उनके प्रदर्शनों को देशविरोधी खाते में डाल कर बंद कर दिया गया है। प्राइम टाइम का यह अंक देख सकते हैं। 

Watch our Videos

CARTOON


Feature

कश्मीरी पत्रकार की व्यथा : उसने कहा “सर यही आदमी है” पलक झपकते ही असॉल्ट राइफलों से लैस दर्जन भर पुलिसकर्मियों ने हमें घेर लिया

➤फहद शाह 30 सितंबर 2020 को मैं अपने फोटो पत्रकार सहकर्मी भट बुरहान के साथ न्यू यॉर्क स्थित प्रकाशन बिज़नेस इनसाइडर के लिए एक असाइनमेंट करन...

Flashlight

Video

Footlight