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अखबारों की हिंदी: उर्दू के किसी भी शब्दकोश में ख़िलाफ़त का अर्थ ‘विरोध’ या ‘असहमति’ जैसा नहीं मिला

➤ संत समीर

दो-तीन साल पहले हिन्दी पत्रकारिता में अँग्रेज़ी शब्दों के अनावश्यक प्रयोगों की पहचान करने की दृष्टि से हफ़्ते भर तक कुछ बड़े अख़बारों की क़रीब-क़रीब हर ख़बर पर मैंने निगाह डालने की कोशिश की थी। तब हिन्दी भाषा-व्याकरण की कुछ दूसरी ग़लतियों पर भी निगाह पड़ी थी। तब के अपने अख़बार यानी ‘हिन्दुस्तान’ में जो ग़लतियाँ मुझे मिलीं, उनकी सङ्ख्या हर दिन के हिसाब से औसतन सवा सौ के आसपास थी। 


वैसे उस समय कुछ लोगों ने मुझे हिदायत दी थी कि ग़लती निकालने वाले ऐसे काम मत किया कीजिए, क्योंकि ऊँचे ओहदे पर बैठे लोग सही चीज़ें कम बरदाश्त कर पाते हैं। मज़ेदार है कि बहुत पहले ‘कादम्बिनी’ में जब मैंने क़रीब दो सौ ग़लतियों पर लाल-पीला निशान लगाया था, तो मेरे ख़िलाफ़ अभियान ही चला दिया गया कि मैं छपी हुई पत्रिका में ग़लतियाँ क्यों निकाल रहा हूँ! मेरी इच्छा थी कि पत्रिका साफ़-सुथरी छपनी चाहिए, पर अभियान चलाने वाले भी शायद ठीक ही थे कि बनिया के काम में आख़िर कङ्कड़-पत्थर के बिना काम कैसे चलेगा!


ख़ैर...आज अख़बार पढ़ते हुए एक शब्द पर निगाह अटक गई। ‘हिन्दुस्तान’ के पहले पृष्ठ पर एक बड़ी ख़बर के पेटे में एक उपशीर्षक है—दोस्ती खिलाफत नहीं। ख़िलाफ़त शब्द पर ध्यान दीजिए। यह विरोध के अर्थ में इस्तेमाल किया गया है। पहले पृष्ठ को अन्तिम रूप देते समय कार्यकारी सम्पादक प्रताप सोमवंशी से लेकर प्रधान सम्पादक शशि शेखर तक की निगाह जाती रही है। प्रताप सोमवंशी शायरी भी करते हैं। ऐसे में मैं इन लोगों के बारे में कह नहीं सकता कि इन्होंने यह शब्द जानबूझकर इस्तेमाल किया है या अनजाने में। यों, हिन्दी में ख़िलाफ़ से ख़िलाफ़त बनाने वाले जितने भी लोग अब तक मुझे मिले हैं, उन्होंने अज्ञान में ही ऐसा किया है। सवाल उर्दूवालों से है कि वे क्या सोचते हैं, क्योंकि ख़िलाफ़ और ख़िलाफ़त दोनों शब्द अरबी के हैं और दोनों को अरबी में अलग-अलग अर्थों में इस्तेमाल किया जाता रहा है। 


उर्दू के किसी भी शब्दकोश में ख़िलाफ़त का अर्थ ‘विरोध’ या ‘असहमति’ जैसा नहीं मिला। ख़िलाफ़त का अर्थ है--प्रतिनिधित्व, नेतृत्व, नुमाइन्दगी, जाँ-नशीनी, उत्तराधिकार, मुसलमानों के ख़लीफ़ा का पद या भाव। ख़िलाफ़त-ए-राशिद, यानी हज़रत मुहम्मद साहब के चार ख़लीफ़ाओं का समय और उनका ओहदा या हैसियत। इमामत का भी क़रीब-क़रीब ऐसा ही अर्थ है। आज़ादी का इतिहास पढ़े हुए लोगों को बताने की ज़रूरत नहीं है कि ख़लीफ़ा से सम्बन्ध रखने वाला ख़िलाफ़त आन्दोलन क्या था।


अवज्ञा, अनुचित आचरण या विरोध के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले ख़िलाफ़ शब्द से ख़िलाफ़त नहीं, बल्कि मुख़ालफ़त (मुख़ालिफ़त) बनता है। अर्थात् विरोध, शत्रुता, इख़्तिलाफ़, वैमनस्य। मुख़ालिफ़ बनाइए तो अर्थ होगा—विरोधी, मुख़ालफ़त करने वाला। बहुवचन में बनेगा मुख़ालिफ़ीन यानी विरोधी लोग, शत्रुगण।


उर्दू शब्दकोशों में भले न हो, पर हिन्दी के कुछ शब्दकोशों में ख़िलाफ़त का अर्थ ‘विरोध’ मौजूद है। अरविन्द कुमार जी के समान्तर कोश में ख़िलाफ़त के जो अर्थ हैं, वे ही मुख़ालफ़त के भी हैं—विरोध, असहमति, टकराव, प्रतिरोध, अपोजीशन। फेसबुक पर अरविन्द जी मौजूद हैं, इसलिए वे बता सकते हैं कि ख़िलाफ़त के इन अर्थों को उन्होंने किन स्रोतों से लिया है।


बहरहाल, मैं विरोध के लिए मुख़ालफ़त शब्द का ही इस्तेमाल करता रहा हूँ, ख़िलाफ़त का नहीं। अब विद्वान् लोग बताएँ कि उर्दू और हिन्दी के शब्दोकोशों में यह अन्तर समझदारी की वजह से है या नासमझी के चलते? जो लोग समझ-बूझकर 'विरोध' के लिए 'ख़िलाफ़त' शब्द इस्तेमाल करते रहे हैं, वे कारण बताएँगे तो अच्छी बात, पर जो लोग सिर्फ़ देखादेखी ऐसा करते रहे हैं, उन्हें बस मेरी तरह जिज्ञासु बने रहना उचित है, क्योंकि ज़बरदस्ती का तर्क-वितर्क अपना ही नहीं, जनता-जनार्दन का भी नुक़सान करेगा।