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तथ्यों को खंगालें तो लाल बहादुर शास्त्री उन लोगों के साथ खड़े दिखते हैं, जिन लोगों ने महात्मा गांधी की हत्या की !

➤ धीरेश सैनी

सादगी बेशक एक मूल्य है लेकिन सब-कुछ इस बात से तय नहीं होता कि आप धोती पहनते हैं या पतलून। ईमानदारी बहुत बड़ा मूल्य है पर यह भी सिर्फ़ इस बात से तय नहीं होती कि आपने पैसा कमाया या नहीं। 


हाँ, यह बहुत महत्वपूर्ण है कि सार्वजनिक पद का आपने निजी जीवन को संपन्न बनाने के लिए दुरुपयोग किया या नहीं किया। जब आप किसी पद पर होते हैं तो आपके फ़ैसलों पर वे लोग भी निर्भर करते हैं जो आपकी जाति या धर्म के नहीं हैं या जिनकी आवाज़ का कोई दबाव व्यवस्था पर नहीं होता या जिनके अधिकारों के हनन पर ही वर्चस्ववाली तबकों का हित टिका होता है। और जब एक लोकतंत्र को आधार देने के लिए एक संवैधानिक ढांचे को खड़ा किया गया हो जिसका संकल्प ही धर्म और जाति से ऊपर उठकर काम करना हो तब आप इन मूल्यों को कितना मजबूत करते हैं या कितना नुकसान पहुँचाते हैं, यह बेहद मायने रखता है।

आज भारत के दो ऐसे नेताओं का जन्मदिन है जिन्हें उनकी सादगी की वजह से भी जाना जाता है। एक तो अंतरराष्ट्रीय स्तर के सर्वकालिक मशहूर नेताओं में जगह रखने वाले गाँधी और दूसरे भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री। कुछ लोग गाँधी जयंती के दिन शास्त्री को कम महत्व दिए जाने की बात किया करते हैं। यह स्वाभाविक है कि दोनों से सहमति-असहमति के बावजूद गाँधी और शास्त्री के क़दों में भाारी फ़र्क़ है। वैसे दोनों के व्यक्तित्वों में भी जो विचारों पर खड़े होते हैं, भारी अंतर हैं। 


गाँधी की हत्या जिन लोगों ने की, शास्त्री उनकी राजनीति के साथ खड़े हैं। यह कहना अजीब लगता है क्योंकि तमाम ऐसे नेता गाँधीवादी ही कहलाते रहे हैं। लेकिन, जब हम तथ्यों से गुज़रते हैं तो कुछ और ही पाते हैं। अयोध्या में अचानक मूर्तियां रख दिए जाने के मामले में बतौर उत्तर प्रदेश के गृह मंत्री उनकी भूमिका निराश करती है। वे तो मुस्लिम बहुल इलाक़ों के बाहर आरएसएस स्वयंसेवकों की ड्यूटी की बात भी कर रहे थे। 


हाँ, गाँधी और शास्त्री की जयंती के दिन नेहरू का ज़िक्र। अयोध्या में मूर्तियां रख देने के लिए उन पर भी सवाल उठा दिए जाते हैं। लेकिन, राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद हों, केंद्र में गृह मंत्री पटेल और उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पंत व गृह मंत्री शास्त्री, वहाँ नेहरू, आंबेडकर, मौलाना आज़ाद वगैराह दो-ढाई सेकुलर लोगों की हैसियत क्या रही होगी? 


यह नेहरू की छवि और कोशिशें ही थीं कि तमाम सीमाओं के बावजूद संविधान जैसा-तैसा कुछ दूर तक खिंच सका। नेहरू से गंभीर असहमतियां तो होनी ही चाहिए पर फ़ासिस्टों की घृणा की वजह समझी सकती है। यह अकारण नहीं कि नेहरू के प्रति फ़ासिस्टों में अपार घृणा है।