➤ श्रवण शुक्ला
जब कोई बराबरी नहीं कर पाया तो बिलो दि बेल्ट अटैक किया जा रहा है। खैर, समर्थक मैं किसी का नहीं हूं। लेकिन सारे चैनलों और उनके कर्ताधर्ताओं की हलचल बता रही है कि सारे चूहे मिलकर एक बागड़बिल्ले का शिकार करने की कोशिश कर रहे हैं। अपना क्या है? अपन के प्रोग्राम की टीआरपी मस्त रही है और ये बवाल सिर्फ ऊपर वाला करेगा।
वैसे, एक बात समझ नहीं आई। ये सारा काम डिस्ट्रीब्यूशन वालों का तो हो सकता है, चैनल के किसी बंदे का नहीं। और अकेले अर्नब ये भी कर ले रहा है तो बड़ी बात है। सोचो कि बाकी चैनल कब से कर रहे होंगे? वैसे, एक चैनल साल डेढ़ साल पहले ऐसे आरोप में पकड़ा गया था. अब उसकी टीआरपी 10-11वें नंबर पर रहती है। वो कभी टॉप 5 में लगातार रह रहा था। लेकिन सच ये है कि उस समय उस चैनल में धाकड़ लोग थे, तब टीआरपी आती थी।
बंबई में 2000 बक्से का खेल करके अर्बन+रूरल, मेट्रो, रेस्ट ऑफ इंडिया... सारे सेक्शन में तो टॉप नहीं कर सकता। फिर ये कितना बड़ा फिक्सर कैसे हो गया भाई? ऐसा आदमी, जो दो-दो चैनलों पर लगातार मर रहा हो। चैनल के लिए पैसे ला रहा हो। एडिटोरियल मीटिंग ले रहा हो। उसके पास इन कामों के लिए भी समय मिल पाएगा? मुझे तो नहीं लगता।
रही बात कम समय में ऊपर चढ़ने की, तो नया माल सब देखते हैं। हल्ला पसंद करने वाले ज्यादा देख रहे हैं। गंभीर लोग टीवी 9 देख रहे हैं। वो दूसरे पायदान पर भी चढ़ गया था। अच्छी पैकेजिंग होती है। शांत तरीके से स्क्रीन दिखता है। आंखों और कानों को नहीं चुभता, एक दो लोगों के अलावा। तो क्या इन्हें भी मान लिया जाए? मने यार, कुछ भी मत बोलो और भेड़ चाल का हिस्सा बनने से बचो। कल मैं आजतक में भी नौकरी मांगने जा सकता हूं, रिपब्लिक में भी। जहां काम करूंगा, वहां के माहौल के हिसाब से करना होगा। तो जो आज गालियां दे रहे हैं, कल उन्हीं चैनलों में काम करने लगें तो भी मत चौंकिएगा। समय समय की बात है। खैर, शुरू कहां से किया था, खत्म कहां क'रिया हूं... कुछ समझ नहीं पा'रिया हूं।
मैं टीवी ज्यादा देख नहीं पाता। आप खबरों के लिए सिर्फ एक बुलेटिन देखिए- सौ बात की एक बात। 8-9 बजे। न्यूज 18 इंडिया। बाकी सब कूड़ा परोस रहे। ये स्पीड न्यूज वगैरह बहुत बाहियात चीज हैं। सही कहा है किसी ने: हम सब (मीडिया वाले) गिद्ध हैं! मौका पाते ही टूट पड़ते हैं.