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बलात्कार की रिपोर्टिंग घटना की रिपोर्टिंग नहीं है, ऐसे मसलों पर मीडिया कवरेज अलग तरीक़े के धीरज और कौशल की मांग करती है

रवीश कुमार

बलात्कार हमारे समाज का संस्थागत चेहरा है। विश्व गुरु भारत का समाज अपने भीतर ऐसे पुरुष पालता है जो अपनी ताक़त मोहल्ले की स्त्री पर आज़माता है। मंदिर के बनने से नए भारत का उदय हुआ था मगर उस नए भारत में नया कुछ दिखता नहीं है। 


बलात्कार की घटना की रिपोर्टिंग अलग तरीक़े के धीरज और कौशल की माँग करती है। मैं क्या कहना चाहता हूँ इसे समझने के लिए आपको यह किताब पढ़नी चाहिए। BBC की पत्रकार प्रियंका दुबे ने लिखी है। No Nation For Women. पीड़िता के ज़हन पर घटना की छाप कैसी होती है उसका शरीर उन यातनाओं के निशान को कैसे ढोता है, वो कैसे इन यातनाओं से भागने के लिए इलाक़े बदलती है, जिस इलाक़े में रहती है वह भी कैसे बदल जाता है, आप समझेंगे और बेहतर इंसान बनेंगे। प्रायश्चित भी करेंगे। एक ज़िम्मेदार नागरिकता हल्लागाड़ी पर सवार होकर नहीं आती है। उसके लिए अभ्यास करना होता है। 


जो छात्र पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे हैं वो इसे अवश्य पढ़ें। ताकि याद रहे कि बलात्कार की रिपोर्टिंग घटना की रिपोर्टिंग नहीं है। पत्रकार प्रियंका दुबे की यह किताब मेरे लिए प्राइमर की तरह है। सीखता हूँ इससे। आप सभी छात्र इसे अवश्य पढ़ें। आपका काम प्रियंका से भी अच्छा और गहरा होगा। इस समाज को बदलने के लिए प्रेरित करेगा। 


विश्व गुरु भारत में बेटी को देवी मानते हैं टाइप की फटीचर पंक्तियों से बाहर निकलिए। अपनी रिपोर्टिंग में न तो इसे लाइये और न ही इस फटीचर पंक्ति के चश्मे से विश्व गुरु भारत की औरतों को देखिए। यह किताब एमेज़ॉन पर उपलब्ध है। 399 रुपये की है।