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धनबाद के गजलीटांड़ कोलियरी हादसे के 25 साल, जब करप्शन ने 64 मजदूरों को जल समाधि दिला दी

➤ विवेक सिन्हा

26 सितंबर 1995, रात के 9:15 बजे, धनबाद के गजलीटाड़ कोलियरी में अचानक बिजली चली गई। मूसलाधार बारिश के बीच छाया अंधेरा आज तक नहीं छंटा है। कोयले की काली कमाई भ्रष्टाचार की कालिख और अफसरों की काहिली कि वह काली रात आज भी उन 64 घरों में अंधेरा कर देती है जिनके चिराग़ों को अंतिम सांस के लिए खुला आसमान तक नसीब नहीं हुआ। जमीन के कई मीटर अंदर वे हमेशा के लिए दफन हो गए। 


25 साल बाद 26 सितंबर 2020 को धनबाद के गजलीटाड़ कि उस भयावह रात को याद कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। अब्दुल वाहिद से लेकर लोधा मांझी के परिजनों के लिए यह तारीख कभी ना भूलने वाली ऐसी रात है जो खानों में काम करने वाले किसी भी मजदूर को नसीब ना हो। 25 साल पहले 30 सितंबर 1995 को धनबाद के गजलीटांड़ कोलियरी ने एक बार फिर चास नाला हादसे को दोहरा दिया। नई पीढ़ी तो नई सदी से चंद सालों पहले हुए इस भयानक हादसे के बारे में जानती भी नहीं होगी लेकिन जिस तरह से कोयले की काली कमाई का सरकारी और गैर सरकारी सांठगांठ से चल रहा खेल एक और हादसे को निमंत्रित कर रहा है उससे सबक लेने की तारीख है 26 सितंबर।


गजलीटांड में काम करने वाले पुराने पीढ़ी के लोग आज भी  उस भयानक रात को याद कर सिहर जाते हैं जब गर्मियों में लगभग सुखी रहने वाली कतरी नदी मैं अचानक इतना पानी आ गया कि आसपास की तमाम खानें जल प्रलय का शिकार हो गईं। वर्ष 1896 में में शुरू हुई गजलीटांड़ कोयले की खान मैं यूं तो छोटे बड़े हादसे अक्सर होते रहते थे लेकिन 1995 में हुए इस हादसे ने जो सवाल खड़े किए उसके जवाब आज तक हासिल नहीं हो पाए हैं।

 

26 सितंबर 1995 को शाम 4:00 बजे से लेकर 12:00 बजे रात तक की शिफ्ट में 92 कामगारों ने अपनी हाजिरी लगाई थी जिनमें 10 ठेका कर्मचारी थे। रात के 9:00 बजे तक 6 टन कोयला निकाला जा चुका था। करीब 9:15 अचानक बिजली चली गई। बूंदाबांदी तो हो ही रही थी लेकिन 8:00 बजे रात तक धनबाद और खास तौर से झरिया के इलाके में भयानक बारिश हुई थी। बिजलीबिजली नहीं होने की वजह से मैन वाइंडिंग की गई और 28 व्यक्तियों जिनमें 10 ठेका कर्मचारी शामिल थे उन्हें बाहर निकाला गया। बाकी बचे 64 मजदूर रात के 11:00 बजे तक लगातार संकेत भेज रहे थे कि उन्हें बाहर निकाला जाए। यह मजदूर अंगार पथरा के पीठ संख्या छह पर जमा हुए । फोन बंद हो चुके थे अंदर से वाइंडिंग इंजन चलाने के संकेत लगातार दिए जा रहे थे। 


जमीन के कई मीटर अंदर 64 मजदूरों को पूरी उम्मीद थी कि उन्हें सुरक्षित वापस निकाल लिया जाएगा। वे मदद के इंतजार में थे। इधर कतरी नदी पर निगरानी रखने वाले कार्ड डोमर महतो ने रात के 12:00 बजे आकर खबर दी कि नदी खतरे के निशान से ऊपर बह रही है। न्यायमूर्ति एनके मुखर्जी कमीशन को दिए गए अपने बयान में दो बार महतो ने यह भी बताया कि उसने नाइट शिफ्ट में आए विलास महतो को बताया कि किसी को भी अंदर नहीं जाने दिया जाए।  जांच आयोग को दिए गए बयान के मुताबिक डोमर महतो ने जिब्राइल मियां के साथ जाकर कतरी नदी का मुआयना किया और देखकर हैरान रह गया कि जलस्तर घट और बढ़ रहा है उसने फौरन सुरक्षा अधिकारियों और प्रबंधकों के बंगले की ओर दौड़ लगाई और खतरे के बारे में आगाह किया। हालांकि जांच आयोग कोडोम महत्व के इस बयान पर पूरी तरह विश्वास नहीं रहा था। 


रात के 12:45 पर कतरी नदी का तटबंध टूट गया और सारा पानी अचानक गायब होने लगा। जाहिर सी बात है कि यह पानी कोयले की खदानों में दाखिल हो रहा था। इतना ही नहीं कतरास का राजातालाब टूट गया जिसमें करीब 275 करोड़ लीटर पानी था वह भी कतरी नदी में जाकर मिल गया। इधर गजलीटांड़ खान के अंदर मजदूर अभी भी मदद की उम्मीद लगाए बैठे थे। डूमर महतो ने सेफ्टी मैनेजर और मैनेजर को खतरे के बारे में बताया। सेफ्टी मैनेजर पी एल वर्मा और मैनेजर नागेंद्र सिंह अंगार पथरा के फिट संख्या 7 की ओर दौड़े तो उन्हें पता चला कि अंदर 6 मजदूर अभी भी काम कर रहे हैं हैं उन्हें फौरन किसी तरह से बाहर निकाला गया। इसके बाद यह लोग पिट संख्या क्षेत्र के पास पहुंचे लेकिन बिजली नहीं होने की वजह से और बॉयलर के खराब होने के कारण मजदूरों को निकालना मुश्किल लगने लगा। किसी तरह से उन्हें पिट संख्या 4 के पास भेज दिया गया। 


इधर कतरी नदी का पानी तेजी से खानों के अंदर घुस रहा था। रात के 1:30 बजे तक कतरी नदी ने अपना रास्ता बदल लिया और गजलीटांड़ के साथ-साथ आसपास के दूसरों खानों में पानी भरने लगा। नीचे फंसे मजदूरों को बचाने के लिए तमाम उपाय बेकार साबित होने लगे मीट संख्या 4 पर जब अधिकारी पहुंचे तब उन्हें अंदर से पानी गिरने की भारी आवाज सुनाई दे रही थी 9 मीटर ऊपर तक पानी भर चुका था।  


धनबाद मैं उस दिन भारी बारिश हुई थी गजल ईरान में बारिश ने अब तक का सारा रिकॉर्ड तोड़ दिया था।26 सितंबर 1995 को 360 मिलीमीटर बारिश हुई थी जो सामान्य से 3 गुना अधिक थी। गजलीटींड, कतरास चेतू डीह, कतरास प्रोजेक्ट सलेमपुर कोयला खानों में 3000 मिलियन गैलन पानी भर चुका था। भूमिगत खाने जलाशय में तब्दील हो चुकी थी। 64 लोगों की मौत ने पूरे कोयलांचल को मातम में डुबो दिया था।  खानों से पानी निकालने के लिए उस वक्त भी पर्याप्त साधन बीसीसीएल के पास नहीं थे चीन और यूक्रेन से मदद मांगी गई। 


कई महीनों तक लगातार मोटर चलाने के बाद पानी बाहर पूरी तरह नहीं निकाला जा सका। कई बार पानी के अंदर ही कोयले की खानों में आग लगने की घटना सामने आई। इस दुर्घटना की जांच के लिए सरकार ने न्यायमूर्ति एनके मुखर्जी की अध्यक्षता में आयोग गठित किया। 26 जून 1998 को आयोग ने अपनी रिपोर्ट तो सौंपी लेकिन तब तक सरकार ने जांच बंद करवा दिया था। जस्टिस मुखर्जी ने अपनी रिपोर्ट में साफ तौर से इस दुर्घटना के लिए खान सुरक्षा महानिदेशालय को जिम्मेदार ठहराया। बीसीसीएल के बड़े अधिकारियों की जिम्मेदारी भी तय की गई थी। रिपोर्ट में कहा गया कि खनन सुरक्षा महानिदेशालय ने गजलीटांड़ कोयला खान के 4 यूएपी सेक्शन तथा अंगार पथरा कोयला खान के एनपी सेक्शन के बीच कोल बैरियर को मिटाने की अनुमति दे दी थी जिसकी वजह से कतरी नदी का पानी खानों में प्रवेश कर गया। अगर यह कॉल बैरियर नहीं हटाया जाता तो बांध टूटने की वजह से भी खानों में कतरी नदी का पानी प्रवेश नहीं करता। 


इतना ही नहीं तमाम कायदे कानूनों को ताक में रखते हुए बाढ़ के वक्त पर्याप्त सुरक्षा उपाय नहीं किए गए। साल दर साल लापरवाही बरती गई। कतरी नदी पर जो बांध बना था वह भी पर्याप्त नहीं था। जांच रिपोर्ट में कार्यवाहक महाप्रबंधक को भी जिम्मेदार ठहराया गया हालात को देखते हुए वह रातों-रात बंगले से गायब हो गए थे। करीब 8 महीने के बाद 40 मई 1996 को गजलीटांड़ से पांच कंकाल बरामद किए गए जिनके सिर पर टोपियां लगी हुई थीब जिनसे मजदूरों की पहचान की गई।


25 साल बाद भले ही गजलीटांड़ खान दुर्घटना को लोग भूल जाए लेकिन यह याद रखना जरूरी है कि एक बार फिर कोयले को निजी हाथों में देने की तैयारी चल रही है कोयले के धंधे में करप्शन अपनी चरम सीमा पर है सुरक्षा मानकों कि अब कोई जांच पड़ताल तक नहीं होती, आउटसोर्सिंग का जमाना है, पुरानी गलतियों से अगर अभी भी सबक नहीं लिया तो हादसे इंतजार में हैं।